
प्रस्तावना:-
उर्वशी अप्सरा का उल्लेख भारतीय ग्रंथ जैसे ऋग्वेद, महाभारत, रामायण और कालिदास के नाटकों में मिलता है। उर्वशी केवल सौंदर्य की प्रतिमूर्ति ही नहीं, बल्कि भावना, प्रेम और मानवीय कमजोरी की प्रतीक भी मानी जाती है। धर्मग्रंथों में उर्वशी को एक दिव्य अप्सरा माना गया है, जो उसकी सुंदरता, कला और आकर्षण के लिए प्रसिद्ध है।
उर्वशी अप्सरा को स्वर्ग की नृत्यांगना व इंद्र के सभा की शोभा बढ़ाने वाली कहा गया है । उर्वशी की एक प्रसिद्ध कथा राजा पुरुरवा से उसके प्रेम की है। उसका चरित्र कला, सौंदर्य और स्त्रीभावना की दिव्यता का प्रतीक बनकर सामने आता है। भारतीय साहित्य और संस्कृति में उर्वशी एक ऐसी अप्सरा है, जो मानवता और आध्यात्मिकता के बीच संतुलन का संदेश देती है।
उर्वशी का जन्म:
उर्वशी अप्सरा के जन्म की कथा कई भारतीय पौराणिक ग्रंथों में मिलती है, लेकिन सबसे प्रसिद्ध और माने जाने वाली कथा ऋग्वेद, महाभारत, और मत्स्य पुराण आदि में मिलती है।
प्राचीन समय की बात है। स्वर्ग लोक में कई अप्सराय रहती थी जो देवताओं के मनोरंजन, यज्ञों में नृत्य और संगीत तथा स्वर्गलोक की शोभा बढ़ाने के लिए जानी जाती थीं। उन अप्सरो में से एक थीं – उर्वशी, ऐसा कहा जाता है कि उर्वशी सारी अप्सराओं में से सबसे सुंदर, बुद्धिमानी व नित्य में भी कुशल थी।
उर्वशी के जन्म की कहानी बहुत ही रोचक है। एक बार ऋषि नारायण और ऋषि नर, जो विष्णु के अंश माने जाते हैं जो हिमालय के पास तपस्या कर रहे थे। उनकी तपस्या को देखकर इंद्र घबराने लगे कि उनकी तपस्या से स्वर्ग का सिंहासन उनके हाथ से जा सकता है। तब इंद्रदेव ने स्वर्ग लोक की सबसे सुंदर अप्सराओं को ऋषियों की तपस्या भंग करने भेजा। लेकिन ऋषि नर-नारायण का ध्यान उनकी ओर जरा भी आकर्षित नहीं हुआ।
तब उन्होंने अपनी जटाओं को पृथ्वी पर मारा जिससे एक कन्या का जन्म हुआ जो बहुत ही सुंदर थी यही कन्या उर्वशी अप्सरा थी। ऐसा माना जाता है कि उर्वशी का जन्म उनकी जाघ से हुआ था इसलिए उसका नाम उर्वशी पड़ा । उर्वशी इतनी सुंदर थी कि स्वयं इंद्र भी उसकी दिव्यताऔर सौंदर्य से आकर्षित हो गए थे।
इंद्र ने उर्वशी अप्सरा से स्वर्ग लोक में चलने की विनती की और उन्हें स्वर्ग में ले जाकर अप्सराओं की श्रेणी में शामिल किया। वह इंद्रसभा की प्रमुख नृत्यांगना बन गईं।
उर्वशी का अर्थ:-
उर्वशी अप्सरा नाम का अर्थ “व्यापक रूप से व्याप्त” है। कुछ लोगों का मानना है कि इसका अर्थ “भोर का मानवीकरण” भी है। उर्वशी के नाम का उल्लेख वेदों , पुराणों ,रामायण और महाभारत में भी किया गया।
उर्वशी का विवाह:-
पुराणों के अनुसार देवगुरु बृहस्पति की पत्नी तारा और चंद्रमा के संयोग से बुध उत्पन्न हुए जो चंद्रवंश के आदि पुरुष थे। बुध का इला के साथ विवाह हुआ, जिसके गर्भ से पुरुरवा का जन्म हुआ, जो बड़े बुद्धिमान, वीर तथा रूपवान थे।
एक बार की बात है नारद मुनि इंद्रदेव के स्वर्ग लोक में आए और वह पुरुरवा के बुद्धि ,कौशल और और वीरता का बखान देवराज इंद्र के सामने कर रहे थे तब वहां उर्वशी अप्सरा भी मौजूद थी और नारद मुनि की बातें सुनकर उर्वशी पुरुरवा की ओर आकर्षित होने लगी। और उर्वशी पुरुरवा को देखने के लिए धरती पर चली गई।जब उन्होंने पुरु को देखा तो उन्हें देखकर वह मंत्रमुग्ध रह गई ।और जब उन्हें उर्वशी को देखा तो वह भी उन्हें देखता ही रह गया कि इतनी सुंदर कन्या कौन है।
दोनों को उसी समय एक दूसरे से प्रेम हो गया। और पुरु ने उर्वशी अप्सरा के सामने विवाह का प्रस्ताव रख दिया। उर्वशी ने भी विवाह के लिए हां कर दी लेकिन विवाह करने से पहले उसने पुरु के सामने तीन शर्ते रखी,अगर इन शर्तो में से एक भी टूटी तो वह उसी समय उन्हें छोड़कर स्वर्ग लोक वापस चली जाएगी। पुरुरवा , उर्वशी से इतना प्यार करते थे कि उन्होंने बिना कुछ सोचे समझे उसकी तीनों शर्तें मान ली और दोनों का विवाह हो गया।
उर्वशी अप्सरा के द्वारा विवाह के लिए पुरुरवा के सामने रखी गई तीन शर्ते:-
पहली शर्त: पुरुरवा उर्वशी की भेड़ों की रक्षा करेगा।
दूसरी शर्त: उर्वशी और पुरुरवा एक-दूसरे को नग्न नहीं देखेंगे, सिवाय संभोग के समय।
तीसरी शर्त: पुरुरवा कभी भी उर्वशी के प्रति अवांछित या अपमानजनक व्यवहार नहीं करेगा।
ऐसा कहा जाता है कि उर्वशी के चले जाने के बाद स्वर्ग लोक की शोभा कम होने लगी थी। जिससे देवराज इंद्र ने उर्वशी को फिर से स्वर्ग लोक में लाने के लिए एक योजना बनाई। देवता भी उर्वशी और पुरुरवा के प्रेम से ईर्ष्या करते थे।
देवराज इंद्र ने एक रात, कुछ गंधर्व उर्वशी की बकरियों को चुराने के लिए भेजा। जब उर्वशी ने बकरियों की चीख सुनी, तो उसने पुरुरवा को बकरियों को बचाने के लिए कहा।
पुरुरवा ने अपनी दूसरी शर्त के बारे में भूलकर, बकरियों को बचाने के लिए बिना कपड़े के बाहर निकल गया। देवताओं ने तब बिजली चमका दी, जिससे उर्वशी ने पुरुरवा को नग्न देखा। इस तरह पुरु की तीनों शर्तें टूट गई और उर्वशी स्वर्ग लोक में वापस चली गई।
पुरुरवा और उर्वशी के पुत्र:-
ऐसा कहा जाता है कि उर्वशी के स्वर्ग में चले जाने के बाद पुरु बहुत दुखी होता है उसका दुःख देखकर उर्वशी बताती है कि वह उनके बच्चे की मां बनने वाली है और उसे अगले वर्ष उसी स्थान पर लौटने का निर्देश देती है ताकि वे उस रात एक साथ बिता सकें। उर्वशी हर साल एक बार उसके पास लौटती और छह पुत्रों को जन्म देती।
महाभारत के आदि पर्व में इन छह पुत्रों के अलग-अलग नामों का उल्लेख है – आयुस, धीमति, अमावसु और धृधायुस, वनायुस और सत्ययुस। उनके जन्म के बाद उर्वशी ने पुरुरवा को खुद को गंधर्व में बदलने और स्वर्ग जाने के लिए तपस्या करने का सुझाव दिया। पुरुरवा सफलतापूर्वक कार्य पूरा करता है और स्वर्ग में उर्वशी के साथ फिर से मिल पाता है।
उर्वशी से वशिष्ठ और अगस्त्य का जन्म कैसे हुआ:-
ऋग्वेद में वर्णित है कि देवता वरुण और मित्र एक बार यज्ञ कर रहे थे, जब उर्वशी उनके सामने पहुँची। उर्वशी को देखने के बाद, वे कामुक हो गए और अपना वीर्य एक घड़े में गिरा दिया जिससे वशिष्ठ और अगस्त्य का जन्म हुआ। इसलिए वशिष्ठ और अगस्त को उर्वशी के पुत्र माना जाता हैं।
उर्वशी और अर्जुन के मध्य संवाद:-
महाभारत में उर्वशी अप्सरा और अर्जुन के मध्य हुए संवाद को एक बड़े ही दिलचस्प और रोमांचक प्रसंग के रूप में दर्शाया गया है। इस संवाद में उर्वशी द्वारा अर्जुन के प्रति व्यक्त किया गया प्रेम बताया गया है।
उर्वशी और अर्जुन की मुलाकात:-
यह कथा महाभारत के आदिपर्व में बताई गई है एक बार अर्जुन स्वर्गलोक के दर्शन करने आए थे। स्वर्ग लोक में अर्जुन ने कई सारी अप्सरा और देवताओं से मुलाकात की । जिनमें एक प्रमुख अप्सरा उर्वशी थीं। उर्वशी का रूप और सौंदर्य इतना आकर्षक था कि अर्जुन भी उनसे प्रभावित हुए।
उर्वशी का अर्जुन से प्रेम प्रस्ताव:-
उर्वशी अप्सरा इतनी सुंदर थी कि अर्जुन भी उनकी ओर आकर्षित हो गए थे। उर्वशी अप्सरा ने अर्जुन को देखकर उन पर मोहित हो गईं। एक दिन जब अर्जुन उनके पास गए, तो उर्वशी ने उन्हें अपने प्रेम का प्रस्ताव दिया। उर्वशी ने कहा – तुम मेरे सुंदर रूप और आकर्षण को देख कर क्या मेरे प्रेम में नहीं पड़ सकते। अर्जुन, जो पहले से ही एक नायक और योगी थे, उन्होंने उर्वशी के प्रेम प्रस्ताव को मना कर दिया।

उर्वशी का गुस्सा और श्राप :-
अर्जुन द्वारा उर्वशी अप्सरा के प्रेम को मना करने पर उर्वशी बहुत क्रोधित हो गई। उर्वशी अप्सरा को अर्जुन का यह व्यवहार बुरा लगा। और उर्वशी ने क्रोध में आकर अर्जुन को श्राप दे दिया। उर्वशी ने अर्जुन से कहा – तुम मुझे नकारते हो तो मैं तुम्हें श्राप देती हूं कि तुम अपने जीवन में एक स्त्री के साथ प्रेम नहीं कर पाओगे।
अर्जुन ने यह श्राप स्वीकार किया लेकिन उन्होंने उर्वशी को यह बताया कि वह इस समय ब्रह्मचर्य का पालन कर रहे हैं और उनका ध्यान युद्ध और तपस्या में अधिक है, इसलिए वह किसी भी स्त्री से प्रेम नहीं कर सकते। अर्जुन कि यह बातें सुनकर उर्वशी संतुष्ट हो गईं, और उन्होंने अपना श्राप वापस ले लिया।
उर्वशी का वरदान :-
उर्वशी ने फिर अर्जुन को वरदान देते हुए कहा कि उनके जीवन में एक विशेष घटना घटेगी, जब वह अपने तप से ब्रह्मा के वरदान से अद्वितीय शक्ति प्राप्त करेंगे। उर्वशी ने अर्जुन को यह भी वरदान दिया कि वह युद्ध के दौरान अप्सराओं से उत्पन्न होने वाली शक्तियों का उपयोग कर सकेंगे।
उर्वशी और अर्जुन की यह कहानी यह संदेश देती है कि कभी-कभी व्यक्ति को अपने जीवन में आने वाली भव्यता और मोह से परे रहते हुए अपने लक्ष्यों को ध्यान में रखना चाहिए। उर्वशी और अर्जुन के बीच की मुलाकात एक उदाहरण है कि आत्मनियंत्रण और तपस्या का परिणाम हमेशा सकारात्मक होता है।
उर्वशी की कहानी को कालिदास ने अपने नाटक “विक्रमोर्वशीयम” में भी रूपांतरित किया है, जिसमें उर्वशी और पुरुरवा मुख्य पात्र हैं। इस नाटक में, उर्वशी और पुरुरवा के बीच प्रेम और त्याग की कहानी को और अधिक विस्तार से बताया गया है।
ऋषि अगस्त्य का श्राप :-
वायु पुराण में उल्लेख है कि ऋषि अगस्त्य एक बार इंद्र के दरबार में आते हैं और उनका स्वागत उर्वशी के नृत्य प्रदर्शन से होता है। प्रदर्शन में, उर्वशी और इंद्र के पुत्र जयंत एक दूसरे की आँखों में प्यार से देखते हैं। विचलित उर्वशी एक ताल चूक जाती है, और नृत्य अस्त-व्यस्त हो जाता है। इसके कारण, जयंत को बांस के रूप में जन्म लेने का श्राप मिलता है, और उर्वशी को माधवी नामक एक महिला के रूप में पृथ्वी पर जन्म लेने का श्राप मिलता है।
ऋषि ऋष्यश्रृंग को जन्म:-
भारतीय ग्रंथों में ऐसा कहा जाता है कि उर्वशी ने ऋषि ऋष्यश्रृंग को जन्म दिया था। महाभारत के अनुसार , उर्वशी एक नदी के किनारे यात्रा कर रही थी, जब कश्यप के पुत्र ऋषि विभांडक ने उसे देखा और उसकी सुंदरता से मोहित हो गए और वीर्य स्खलित हो गए। उनका बीज एक हिरणी के संपर्क में आता है, जो एक अप्सरा निकलती है जिसे तब तक उसी रूप में रहने का श्राप दिया जाता है जब तक वह एक लड़के को जन्म नहीं दे देती। वह ऋष्यश्रृंग को जन्म देती है, और उसका पालन-पोषण उसके पिता द्वारा किया जाता है।
वर्तमान में उर्वशी के मंदिर:-
वर्तमान में उर्वशी के मंदिर एक ही स्थान पर है, जो कि उत्तराखंड के चमोली जिले में बामणी गांव में स्थित है। यह बद्रीनाथ धाम से लगभग 1 किलोमीटर की दूरी पर है। यह मंदिर अप्सरा उर्वशी को समर्पित है, जो हिंदू धर्म में सुंदरता और आकर्षण की प्रतीक मानी जाती हैं।
निष्कर्ष:-
उर्वशी के जीवन से कई महत्त्वपूर्ण शिक्षाएं मिलती हैं। उर्वशी की कहानी से पता चलता है कि सौंदर्य और प्रेम की शक्ति बहुत बड़ी होती है। उर्वशी एक सुंदर और शक्तिशाली अप्सरा थी। जिसने कई पुरुषों को मोहित किया था। उर्वशी और पुरुरवा के बीच प्रेम की कहानी, प्रेम और काम के बीच के अंतर को दर्शाती है।
इस तरह, उर्वशी हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण देवी और अप्सरा हैं। वे अपने सौंदर्य, नृत्य और गीत के लिए जानी जाती हैं। उनकी प्रेम कहानी हमेशा के लिए हिंदू संस्कृति में बनी रहती है।#Apsara Secret#Urvashi Apsara#Urvashi Apsara kon hai#