
प्रस्तावना:
मां चामुंडा सबसे प्राचीन स्वरूप है माता का। सनातन धर्म में ज्यादातर सभी माता खुशहाल स्वभाव वाली दिखती है वही चामुंडा माता गुस्से वाली दिखाई देती है चामुंडा पिशाचिनी माता दुर्गा माता का रूप है उन्हें अष्टभुजा देवी भी कहा जाता है।
क्योंकि उनके आठ हाथों में अलग-अलग अस्त्र शास्त्र होते है। उनका स्वरूप दोस्तों का विनाश करने वाला है और धर्म की रक्षा करने वाला है मां हमारे जीवन को अंधकार से बाहर निकालती है। हर देवी के अनेकों रूप होते हैं शान्त वाले भी और क्रोध वाले भी चामुंडा पिशाचिनी माता का नाम सुनकर ही हमें भय और रहस्य जैसा लगने लगता है।
इस ब्लॉक के माध्यम से हम विस्तर में जानेंगे कि कैसा है चामुंडा पिशाचिनी माता का स्वरूप , पुरानी कथाएं तांत्रिक साधना, मंत्र ,पूजन विधि, प्रसिद्ध मंदिर और चमत्कार।
आध्यात्मिक अर्थ:
भारत भूमि पर कई सारे रहस्य और आध्यातम से जुड़ी चीज हैं देवी देवताओं की पूजा यहां पर बहुत पहले से की जाती है और उन्हीं में से एक चामुंडी माता भी है ।
चामुंडा को महाकाली चामुंडा और अंबिका के नाम से भी जाना जाता हैं।चंडिका देवी को शक्ति का प्रतीक माना जाता है जो धर्म और अन्याय का अंत करती है। माताजी चामुंडा देवी की कहानी उनके पराक्रम शक्ति और दुष्ट राक्षसों के संघर्ष से जुड़ी है यह कथा धार्मिक आध्यात्मिक और प्रेरणादायक है ।
जहां श्मशान ,अंधकार और तांत्रिक शक्तियों की बात हो वहां चामुंडा पिशाचिनी माता का निवास होता है।
चामुंडा माता का स्वरूप:
चामुंडा माता ma chamunda देवी दुर्गा का ही रूप मानी जाती है चामुंडा नाम चण्ड और मुंड नाम के दो राक्षस से आया है । जिनका वध चामुंडा माता ने किया था। पुराणों के अनुसार जब यह दो राक्षस लोगों पर बहुत अत्याचार कर रहे थे तब मां दुर्गा ने अपना चामुंडा रूप धारण कर राक्षसों को मारा था।
चामुंडा माता का यह रूप यह सिखाता है कि बुराई चाहे कितनी भी शक्तिशाली क्यों न हो, धर्म और सच्चाई की जीत आवश्यक होती है। उनका यह उग्र रूप हमें बताता है कि कभी-कभी बुराई को खत्म करने के लिए कठोर रूप धारण करना पड़ता है। माता का यह रूप तांत्रिक ज्ञान का प्रतीक है।
मां चंडिका का जन्म :
मां चंडिका का जन्म कब हुआ जब संसार में अधर्म और अन्य चरम सीमा पर था तब असुरों ने देवताओं को पराजित कर स्वर्ग पर कब्जा कर लिया था सभी देवताओं ने अपनी शक्ति और ऊर्जा का समर्पण एक दिव्य शक्ति का निर्माण किया जो चंडिका के रूप में प्रकट हुई।
चामुंडा देवी की उत्पत्ति की कथाएं:
शुंभ और निशुंभ दो बलशाली असुर भाई बहुत शक्तिशाली और अहंकारी थे उन्होंने तपस्या करके भगवान विष्णु से वरदान प्राप्त किया था कि कोई भी पुरुष देवता असुर या मानव उन्हें नहीं मार सकता वरदान के कारण वे अजय हो गए और उन्होंने तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया उन्होंने स्वर्ग से देवताओं को निकाल दिया और अत्याचार करना शुरू कर दिया देवताओं ने भगवान विष्णु और शिव से सहायता मांगी विष्णु और शिव ने सलाह दी की कोई देवी शक्ति ही इन असुरों का विनाश कर सकते हैं
देवताओं ने मां पार्वती की आराधना की पार्वती माता ने अपनी तेजस्वी शक्ति को प्रकट किया जिससे माता चामुंडा देवी का जन्म हुआ देवी शक्ति इतनी विकराल और तेजस्वी थी कि सभी देवता और असुर भयभीत हो जाए ।
शुंभ और निशुंभ के दो मुख्य सेनापति चण्ड और मुंड यह दोनों असुर अत्यंत बलशाली और अहंकारी थे उन दोनों ने चंडिका देवी को बंधी बनाने का प्रयास किया जब चण्ड और मुंड ने चंडिका देवी पर आक्रमण किया तब देवी चामुंडा ने विकराल रूप धारण कर लिया उनकी आंखों से आग निकल रही थी और उनकी भुजाएं अस्त्र शास्त्रों से सजी थी
देवी ने दोनों असुरों का वध किया इसके बाद देवताओं ने देवी का चामुंडा नाम रखा जो चण्ड और मुंड का वध करने वाली है रक्तबीज का वध चंडिका देवी के क्रोध और पराक्रम से शुंभ और निशुंभ को भय हुआ उन्होंने अपनी पूरी सेना को देवी पर आक्रमण करने के लिए भेज दिया सेना का नेतृत्व रक्तबीज नामक असुर ने किया रक्तबीज का वरदान था कि उसके रक्त की हर भूल से नया रक्तबीज उत्पन्न होगा इससे वह अजय हो गया था
जब देवी ने रक्तबीज पर आक्रमण किया और उसे घायल किया तो उसकी रक्त की बूंद से अनेकों रक्तबीच उत्पन्न हो गए देवी ने समस्या का समाधान खोजते हुए महाकाली का रूप धारण किया महाकाली ने रक्तबीज के खून को अपनी जीभ से पी लिया व्रक्त की बूंदे धरती पर नहीं गिरी आखरी में उन्होंने रक्त बीच का अंत कर दीया ।
रक्तबीच के मारे जाने के बाद शुंभ और निशुंभ स्वयं युद्ध के लिए आए वह अत्यंत बलशाली और अजय थे शुभ ने देवी से कहा तुम्हारी शक्ति अकेले हमारी शक्ति के सामने कुछ भी नहीं है इस पर देवी ने उत्तर दिया यह मेरी शक्ति नहीं है यह समस्त ब्रह्मांड की शक्ति है इसके बाद देवी ने अपनी सभी शक्तियों और 10 महा विधाओं को प्रकट किया देवी चंडिका ने उग्र रूप धारण कर निशुंभ का वध किया अंत में देवी ने शुंग का भी अपने त्रिशूल से वध कर दिया।
1.चण्ड-मुंड वध (सप्तम अध्याय से)
आज्ञप्तास्ते ततो दैत्याश्चण्डमुण्डपुरोगमाः।
चतुरङ्गबलोपेता ययुरभ्युद्यतायुधाः।।
अर्थ : उसे समय चण्ड और मुंड राक्षस अपनी विशाल सेना को , हाथियों को और अस्त्र-शास्त्र को लेकर माता पर आक्रमण करने के लिए निकले।
2.रक्तबीज वध (अष्टम अध्याय से)
ॐ ऋषिरुवाच।
चण्डे च निहते दैत्ये मुण्डे च विनिपातिते।बहुलेषु च सैन्येषु क्षयितेष्वसुरेश्वरः।।८.१।।
अर्थ: जब चण्ड और मंड की सेना खत्म हो गई तब माता आगे बड़ी और उन्होंने रक्त बीज नामक राक्षस को मार दिया
अनुभव कथाएँ और सिद्ध साधकों के अनुभव:
1. तांत्रिक महिला की सिद्धि:-
राजस्थान के एक गांव में 70 साल की मृत महिला रहती थी वहां रहने वाले सभी लोग उन्हें माता पिशाचिनी की बहन कहते थे। उन्होंने कभी किसी को अपना नाम नहीं बताया था इसलिए कोई भी उनका नाम नहीं जानते थे। वह महिला मां चामुंडा पिशाचिनी की तांत्रिक साधना कई करीबन 20 वर्ष से कर रही है।
उनका शरीर दुबला पतला है उन्होंने अपने बालों को कभी नहीं काटा और वह काले कलर के कपड़े पहनती है लेकिन आंखों में चमक और चेहरा खिला हुआ भरा हुआ है वह किसी से ज्यादा बात नहीं करती लेकिन जरूरतमंदों की मदद करने में पीछे नहीं हटती कोई भी मदद मांगता तो मदद करती है अगर गांव में किसी भी महिला को भूत प्रेत या चुड़ेलन लग जाए तो वह उसकी मदद करती है।एक पीतल के लोटे में जल भरती हैं, और उस पर मां चामुंडा पिशाचिनी का बीज मंत्र –
“ॐ ह्रीं चामुंडायै पिशाचिन्यै नमः”
– का जप करती हैं। फिर उसे जल पर फूंक मरती है और पीड़ित महिला को पिलाता है कहते हैं कि जल को पीने से बुरी शक्तियों का प्रभाव खत्म हो जाता है और व्यक्ति ठीक हो जाता हैं।
2.सिद्ध योगी का रहस्य-
बागमती नदी के पास एक साधु रहते हैं जो कि नेपाल के पशुपतिनाथ क्षेत्र में है। यह भी किसी से ज्यादा बातचीत नहीं करते हैं और इनका भी नाम किसी को पता नहीं है। बाबा लगभग 12 वर्ष की उम्र वर्ष से मां चामुंडा की पूजा कर रहे हैं तांत्रिक को कई सारी परेशानियों का सामना करना पड़ता है जैसे अकेलापन भूत प्रेत भय जैसी शक्तियों का सामना करना पड़ता है।
बाबा रोज रात को शमशान के पास जाकर मारा चामुंडा का मंत्र जापकरते थे बाबा एक साधारण जीवन में जीते थे वह किसी से बात नहीं करते थे और धीरे-धीरे उनके अंदर रहस्यमई परिवर्तन देखने लगे वह जब खड़े होते थे तो उन्हें अपने शरीर में गर्मी महसूस होती थी शरीर तपने लगता था उनके आसपास सुगंध फैलती थी।
चामुंडा माता का स्वरूप:
चामुंडा माता देवी दुर्गा का ही रूप मानी जाती है चामुंडा नाम चंड़ और मुंड नाम के दो राक्षस से आया है । जिनका वध चामुंडा माता ने किया था। पुराणों के अनुसार जब यह दो राक्षस लोगों पर बहुत अत्याचार कर रहे थे तब मां दुर्गा ने अपना चामुंडा रूप धारण कर राक्षसों को मारा था।
देवी चंडिका का स्वरुप दिव्या और भयानक है ।
1.रूप उनका गहरा कला और नीला है।
2.भुजाएं उनके आठ हाथ है जिनमे त्रिशूल ,तलवार, गधा,धनुष , चक्र और अन्य अस्त्र शास्त्र है।
3.आभूषण में देखे तो उनके गले में नर मुंडो की माला है।
4.उनकी तीन आंखें है जो त्रिकाल , भूत और वर्तमान भविष्य का प्रतीक है ।
5.वाहन उनका वाहन सिंह है जो शक्ति और साहस का प्रतीक है।
तांत्रिक साधना के महत्व:
मां चामुंडा देवी बहुत प्रभावशाली और शक्तिशाली मानी जाती है। जहां तांत्रिक शक्ति हो वहां चामुंडा माता पिशाचिनी का निवास होता है। मां चामुंडा तांत्रिक विद्या की अधिष्ठात्री देवी है । बहुत बड़े – बड़े तांत्रिक, माता चामुंडा की शक्ति, रक्षा और सिद्धि की प्राप्ति के लिए पूजन करते है । यह विद्या खतरनाक और रहस्य मई जाती है।
माता चामुंडा की साधना ,श्मशान साधना, पूर्णिमा और अमावस्या की रात्रि में की जाती हैं। तांत्रिक साधना में साधक के ऊपर नकारात्मक शक्तियों का कोई प्रभाव नहीं होता है ,वह हमेशा रक्षा कवच बनकर साधक की रक्षा करती है। चामुंडा पिशाचिनी माता साधक के दुख, भ्रम और अहंकार को खत्म कर देती हैं। और तांत्रिक साधक को मोह माया से दूर कर आत्मनिर्भर बना देती है। तांत्रिक साधक माता की पूजा इसलिए करता है ताकि वह मृत्यु भय,क्रोध जैसी नकारात्मक ऊर्जाओं से खुद को दूर रख सके चामुंडा पिशाचिनी माता काल को अपने वश में रखने की भी शक्ति रखती है।
माता की साधना करके साधक जैसे मानसिक शक्ति, दूरदृष्टि, भविष्य दृष्टि, और आत्मबल को बढ़ाते हैं।अमावस्या और रात्रिकालीन साधना में इसका बहुत प्रभाव देखा गया है।
चामुंडा माता की साधना के लाभ:
जेस की हम जानत है ,अघोरी परंपराओं में भी चामुंडा माता की साधना की जाती है अगर सही विधि विधान से उनकी साधना की जाए तो बहुत कल्याणकारी साबित होती है ।
चामुंडा माता की साधना से यह लाभ प्राप्त होते हैं।
1.भय और नकारात्मक शक्तियों से सुरक्षा।
2.हिम्मत और मानसिक ताकत बढ़ती है।
3.जीवन की बाधाएँ दूर होती है।
4.बीमारियाँ और जीवन की समस्याएँ दूर होती हैं।
5.बीमारियाँ और जीवन की समस्याएँ दूर होती हैं।
6.मोह-माया और भ्रम से छुटकारा मिलता है।
7.धध्यान और तप में गहराई आती है
8.सच्चा गुरु अपने आप मिल जाता है
9.शत्रुओं का विनाश
साधना में सावधानियाँ –
माता की साधना गुरु के आदेश अनुसार करनी चाहिए क्योंकि वह बहुत क्रोध वाली है।
साधना के समय शुद्धता और विश्वास आवश्यक होता है।
यह साधना केवल अच्छे कार्यों के लिए ही करें नहीं तो दुष्परिणाम हो सकता है।
देवी चंडिका की पूजा और महत्व:
चंडिका देवी की पूजा विशेष रूप से नवरात्रि ओर दुर्गा पूजा के समय की जाती है उनकी पूजा से भय रोग और शत्रु का नाश होता है भागतो साहस शक्ति और विजय का वरदान प्राप्त होता है ।
1.दुर्ग सप्तशती पाठ चामुंडा देवी की महिमा का वर्णन दुर्गा सप्तशति मिलता है। इस पाठ को नवरात्रि में पढ़ने से विशेष फल मिलता है।
2.चंडी हवन विशेष रूप से तांत्रिक साधना में किया जाता है।
3.उपवास और साधना चंडिका देवी की कृपा पाने के लिए भगत उपवास और साधना करते है ।
प्रसिद्ध चामुंडा माता मंत्र (बहुत शक्तिशाली):
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे
मंत्र जप के लाभ chamunda mata mantra:
1.भूत प्रेत जैसी नकारात्मक ऊर्जा हमारे पास नहीं आती
2.हमारे अंदर साहस आ जाता है और आत्म बल आ जाता है।
3.शत्रु हमसे दूर हो जाते हैं।
4.साधना में सफलता मिलती है।
5.मरने से डर नहीं लगता
6.तांत्रिक ऊर्जा और साधना में सिद्धि
जप विधि (संक्षेप में):
मंत्र का जाप रात्रि, अमावस्या, नवरात्रि या कालरात्रि में करें । 108 बार रोज़ाना जाप करें (माला से)लाल आसन, सरल ध्यान, और माता की मूर्ति या चित्र के सामने बैठें अगर संभव हो तो मंत्र जाप के बाद माता को लाल फूल, लौंग और सिंदूर अर्पित करें
दुर्गा सप्तशती में चामुंडा की महिमा:
चामुंडा माता केवल एक उग्र देवी ही नहीं हैं, बल्कि वह धर्म का नाच और धर्म की रक्षा के लिए भी जानी जाती है।वह चामुंडा माता दुर्गा माता वह विशाल रूप है जो युद्ध के समय प्रकट होती है, ताकि बुराई का अंत कर सके ।
चामुंडा देवी के नाम का उल्लेख मार्कंडेय पुराण के दुर्गा सप्तती में प्रमुखता से होता है और भक्त इस पाठ का अध्ययन करते है।

🔱 चामुंडा पिशाचिनी chamunda pishachni माता के 10 प्रमुख मंदिर, स्थान और विशेषताएँ :-
1. चामुंडा देवी मंदिर – धर्मशाला (हिमाचल प्रदेश)
📍 स्थान: चामुंडा घाटी, कांगड़ा
🌟 विशेषता: शक्तिपीठों में शामिल; यहाँ माता को चामुंडा के रौद्र रूप में पूजा जाता है।
🔮 तांत्रिक साधकों के लिए अमावस्या पर विशेष साधना होती है।—
2. श्री चामुंडा पिशाचिनी शक्तिपीठ – वाराणसी (उत्तर प्रदेश)
📍 स्थान: काशी के तांत्रिक क्षेत्र में, मणिकर्णिका घाट के पास
🌟 विशेषता: यह स्थान तांत्रिक चामुंडा उपासकों का गुप्त केंद्र माना जाता है।
🔥 श्मशान साधना में यहीं विशेष पूजा होती है।
3. महाचामुंडा मंदिर – उज्जैन (मध्य प्रदेश)
📍 स्थान: काल भैरव मार्ग, महाकाल वन के निकट
🌟 विशेषता: चामुंडा के साथ भैरव एवं पिशाच रूपों की उपासना का प्राचीन स्थल।
🕯️ गुप्त तांत्रिकों के लिए महाशिवरात्रि की रात्रि विशेष मानी जाती है।
4. पिशाचिनी देवी मंदिर – शमशान घाट, त्र्यंबकेश्वर (महाराष्ट्र)
📍 स्थान: त्र्यंबकेश्वर के निकट एक गुप्त श्मशान क्षेत्र
🌟 विशेषता: यहाँ देवी को पिशाचिनियों की रानी माना जाता है और भूतबाधा निवारण हेतु पूजा होती है।
5. चामुंडा शक्तिपीठ – झारखंड (रांची से 30 KM दूर)
📍 स्थान: रामगढ़ जिला
🌟 विशेषता: रात्रि साधना और रुद्र पाठ के लिए विख्यात स्थान।
⚡ यहाँ विशेष रूप से तांत्रिकों के लिए दीक्षा समारोह होते हैं।
6. श्री चामुंडा पिशाचिनी मंदिर – कामाख्या (असम)
📍 स्थान: कामरूप क्षेत्र
🌟 विशेषता: देवी कामाख्या के निकट स्थित एक गुप्त तांत्रिक स्थल।
🕉️ गुप्त नवरात्रि में यहाँ साधक विशेष साधना करते हैं।
7. पिशाचिनी चामुंडा मंदिर – चित्रकूट (उत्तर प्रदेश-मध्य प्रदेश सीमा)
📍 स्थान: गुप्त गोदावरी क्षेत्र के पास
🌟 विशेषता: यहां मातृ शक्तियों की गुप्त साधना की जाती है, विशेषकर भैरवी और चामुंडा रूप में।
8. कालिका चामुंडा मंदिर – पाटन (गुजरात)
📍 स्थान: पाटन, सिद्धपुर क्षेत्र
🌟 विशेषता: रात्रि पूजन, लाल वस्त्र, नीम की लकड़ी से हवन, और भूत दोष निवारण के लिए प्रसिद्ध।
9. श्री श्मशान चामुंडा पीठ – जयपुर (राजस्थान)
📍 स्थान: मोतीडूंगरी हिल्स के पीछे, गुप्त प्रवेश द्वार
🌟 विशेषता: यहाँ माँ चामुंडा को श्मशान देवी के रूप में पूजा जाता है। साधक रात्रि में ही प्रवेश करते हैं।
10. पिशाचिनी देवी मंदिर – कालीघाट (पश्चिम बंगाल)
📍 स्थान: कालीघाट शक्तिपीठ, कोलकाता
🌟 विशेषता: यहाँ देवी काली के निकट एक रहस्यमयी पिशाचिनी स्थल है जहाँ तांत्रिक साधक विशेष साधना करते हैं।
🔮 महत्वपूर्ण नोट:
चामुंडा पिशाचिनी माता के अधिकांश मंदिर गुप्त या अघोरी साधना स्थलों के अंतर्गत आते हैं। ये आमतौर पर किसी सामान्य यात्री के दर्शन हेतु खुले नहीं होते या छुपे होते हैं।
चामुंडा माता को कुलदेवी के रूप में पूजने वाले राज्य:
1.राजस्थान
2.हिमाचल प्रदेश
3.गुजरात
4.मध्य प्रदेश
5.उत्तर प्रदेश
6.कर्नाटक
7.छत्तीसगढ़
8.तमिलनाडु
9.महाराष्ट्र
10.झारखंड
11.उड़ीसा
निष्कर्ष:
देवी चंडिका कथा हमें ये सिखाती है कि जब संसार में बुराई बढ़ती है तो धर्म की स्थापना के लिए शक्ति का प्रयोग अवश्य होता है। माता चंडिका के हर भगत को यह संदेश है । उनकी पूजा न केवल शक्ति की प्राप्ति के लिए की जाती है बल्कि आत्मविश्व ,साहस और विजय के लिए भी की जाती है ।
चामुंडा माता को अनेक राज्यों में कुलदेवी के रूप में भी पूजा जाता है। उनका रूप अलग-अलग क्षेत्रों में कभी गैस में तो कभी शांत रूप में होता है। कई लोग तांत्रिक शक्तियों का गलत प्रयोग भी करते हैं। और गलत काम करते हैं लेकिन मां उन्हें कभी माफ नहीं करती और हर करम का फल भी घटना ही पड़ता है।
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