
प्रस्तावना:-
माँ तारा देवी हिंदू धर्म की दस महाविद्याओं में से एक हैं और उन्हें ज्ञान, मुक्ति और रक्षा की देवी माना जाता है। उनका नाम ‘तारा’ का अर्थ है – पार लगाने वाली या संकटों से उबारने वाली। वे विशेष रूप से तांत्रिक साधना और अध्यात्म की अधिष्ठात्री देवी हैं। उनका स्वरूप उग्र है, परंतु वे भक्तों पर अत्यंत करुणामयी हैं।
पौराणिक मान्यता अनुसार, उन्होंने भगवान शिव को अमृत पिलाकर जीवनदान दिया था। तारा देवी की पूजा तांत्रिक और वैदिक दोनों रूपों में होती है। पश्चिम बंगाल का तारापीठ मंदिर और हिमाचल का शिमला स्थित तारा देवी मंदिर उनके प्रमुख मंदिरों में हैं। उनकी उपासना से भय, रोग, शत्रु और अज्ञान का नाश होता है तथा साधक को आत्मबल प्राप्त होता है।
मां तारा देवी कैसे प्रकट हुई:-
माँ तारा देवी हिन्दू धर्म में एक प्रमुख देवी हैं और उन्हें दस महाविद्याओं में से एक माना जाता है। तारा देवी के जन्म या प्रकट होने की कथा तंत्र शास्त्र और पुराणों में विभिन्न रूपों में मिलती है।
एक समय की बात है, जब ब्रह्मांड में एक महाविनाशकारी संकट उत्पन्न हुआ। समुद्र मंथन के समय जब हलाहल विष निकला, तब उस विष से सम्पूर्ण सृष्टि का विनाश निश्चित था। भगवान शिव ने उस विष को अपने कंठ में धारण कर लिया, जिससे वे नीलकंठ कहलाए। लेकिन वह विष इतना प्रबल था कि शिव जी अचेत हो गए। सभी देवता और देवी चिंतित हो उठे, तब आदिशक्ति ने तारा देवी के रूप में प्रकट होकर शिव जी को अपनी गोद में लिया और अपने स्तनों का अमृतपान कराकर उन्हें विष के प्रभाव से बाहर निकाला। इस तरह तारा देवी ने भगवान शिव की रक्षा की।
बौद्ध धर्म में, देवी तारा की उत्पत्ति अवलोकितेश्वर के आँसुओं से हुआ था, जो संसार के दुखों को देखकर निकले थे। यह मान्यता है कि अवलोकितेश्वर के आंसू एक कमल के फूल में बदल गए और इसी फूल से तारा देवी का जन्म हुआ।
तारा देवी ने प्रतिज्ञा की कि वे संसार के सभी प्राणियों की रक्षा करेंगी और उन्हें मुक्ति दिलाएंगी। तारा देवी को “तारिणी” (संसार के बंधनों से मुक्त कराने वाली) के रूप में भी पूजा जाता है।
मां तारा देवी के अन्य नाम व उनके अर्थ:-
मां तारा देवी के अन्य नाम हैं एकजटा , उग्रतारा, नीलासरस्वती (जिसे नीलसरस्वती भी कहा जाता है)। इनके अलावा, तारा देवी को मुक्ति की देवी, श्मशान की देवी, धन की देवी जैसे नामों से भी जाना जाता है।
१.तारा देवी माता का अर्थ है ‘तारने वाली’ या ‘पार कराने वाली’. तारा देवी, दस महाविद्याओं में से दूसरी हैं और उन्हें पार्वती का एक रूप माना जाता है. तारा शब्द का अर्थ है ‘तार’ या ‘तारा’।
मां तारा देवी के तीन रूप:
1.एकजाटा : शिव के दस रुद्र अवतार में दूसरा रुद्र अवतार है तारकेश्वर जिसे तारकेश्वर नाम से भी जाना जाता है। यही तारकेश्वर शिव की शक्ति को देवी तारा माना जाता है देवी ब्रह्मत्व, एकत्व देने वाली है इसलिए देवी को एक जाटा माना जाता है जो शिवजी को अपनी पिंगल जाटा में धारण करती है। देवी अपने भक्तों को मृत्यु उपरांत अपनी जटाओं में विराजित शिव का स्थान प्रदान करती है।
2.नील सरस्वती: बृहद नील तंत्र ग्रंथो में विशेष स्वरुप की चर्चा की गई है। हयग्रीव का वध करने के लिए देवी ने नीला विजय प्रकट किया। इसलिए देवी को नील सरस्वती कहते हैं। नील सरस्वती के रूप में माता भक्तों को वाक् शक्ति प्रदान करती हैदेवी संपूर्ण ब्रह्मांड की ज्ञान शक्ति की ज्ञाता है। संपूर्ण ब्रह्मांड में जो भी ज्ञान इधर-उधर बिखरा हुआ है उन सब को एकत्रित करने पर जिस ज्ञान की उत्पत्ति होती है उसे ही नील सरस्वती कहा जाता है।
देवी परम ज्ञानी है ,अपने असाधारण ज्ञान से देवी शव को शिव रूप में ,माता परिवर्तन करने में समर्थ है।
3.माँ तारा उग्र होने के कारण इन्हें उग्रतारा भी कहा जाता है।माता भयानक से भयानक संकटों में साधक को सुरक्षित रखती हैं।
मां तारा की उपासना:-
भगवती तारा की उपासना तांत्र तंत्रोक्त पद्धति से की जाती है जिसे आगमुक्त पद्धति भी कहते हैं। इनकी उपासना से साधक बृहस्पति के समान विद्वान हो जाता है।
माँ तारा का निवास स्थान घोर शमशान को माना जाता है जहां सर्वदा चिता जलती रहती है ज्वलंत चिता के ऊपर माता वाघंबर पहन पर खड़ी है देवी प्रत्यलीध मुद्रा में खड़ी है
प्रत्यलीध मुद्रा यानी दाहिने पैर आगे किए हुए युद्ध में लड़ने हेतु की गई मुद्रा।
देवी शव पर बैठी है देवी के मस्तक पर पंच कपालों से सुसज्जित मुकुट है।
माँ तारा के तीन नेत्र है माता की दंत पंक्ति विकट हास्य करने के कारण देवी अत्यंत उग्र प्रकट होती है।देवी गौर नील वर्ण की है। माता नर हस्तियों से बनी महाशंख माला धारण करती है। उनके शरीर पर सर्प लिपटे हुए हैं। सर के बाल उलझे बिखरे प्रतीत होते हैं।
मां तारा कारूप:-
देवी चारों हाथों से युक्त है तथा नीलकमल खप्पर तलवार व कैची धारण किए हुए हैं। माता के चारों और सियार ,गीदड़ ,कुत्ते आदि जीव रहते हैं।
बौद्ध धर्म की वज्रयान शाखा में देवी तारा की चर्चा की गई हैदेवी को मुक्ति की जननी के रूप में मान्यता दी गई है माता तारा को अवलौकितेश्वर का असली रूप माना जाता है।
माँ तारा को जापान में तारा बोसत्सु सुख तथा चीन में डुओलुओ पूसा कहा जाता है।
बौद्ध धर्म में मां तारा Tara mata के अन्य नाम:-
बौद्ध धर्म में तारा देवी के विभिन्न रूपों का वर्णन है। जैसे उग्रतारा खदिरवनी तारा ,षट्भुजी शीत तारा, वश्यतारा , लाल तारा
1.इनमें से उग्रतारा देवी की आकृति अत्यंत भयंकर होती हैतीन आंखों वाली यह देवी चतुर्भुज स्वरूप में हाथ में कटार ,कमल कर्तरी एवं कपालधारण किए हैं।मानव शरीर पर प्रत्यलीध आसन में नरमुंड माला पहने हुए प्रदर्शित है।
2.खदिरवनी तारा, हरित वर्ण की इस देवी के दो मुख है माता के बाएं हाथ में नीलकमल प्रदर्शित होता है वह दाएं हाथ में वरद मुद्रा में स्थिर है।
3.षट्भुजी शीत तारा, देवी तारा का यहां तीन मुख व छः भुजाओं वाला स्वरूप है। माता का यह स्वरूप श्वेत है। दाएं हाथ में अक्षमाला एवं बाण तथा बाएं हाथ में कमल व धनुष है।
4.वश्यतारा, देवी को संस्कृत में श्याम तारा तथा तिब्बती में संग्रोल लजंग कहते हैं। इन्हें कुछ लोग मूल तारा भी कहते हैं जो कमल के सिंहासन पर बैठी है। कथा हाथ में एक नीले कमल को पकड़े हुए हैं।
5.लाल तारा यह माता का सौम्य रूप है। यह देवी का स्वरूप खासकर प्रेम, करुणा तथा आकर्षक की देवी माना जाता है। लाल तारा देवी खासकर प्रेमियों के द्वारा पूजी जाती है। यह देवी की आराधना महिला प्रेम में वशीकरण हेतु करती है मां लाल तारा अत्यंत मनमोहक रूप वाली है
यहां माता जादू -टोना ,डाकिनी – शाकिनी से मुक्ति दिलाने वाली देवी है।
महाचीन में भी देवी तारा देवी की आराधना की जाती है। महाचीन मतलब आज का तिब्बत। तिब्बत को साधना का गण मन जाता है। मणिपद्मा देवी ,देवी तारा का ही एक तिब्बती नाम है।
देवी की आराधना से असंभव काम भी संभव हो जाता है।तारा महाविद्या की साधना अत्यंत कठोर है।
साधना में किसी भी प्रकार के नियम में शीथिलता होने पर साधना सफल नहीं हो पाती है।
महाकाल संहिता में काम- कला खंड में तारा रहस्य का वर्णन हैइसमें तारा देवी की उपासना का विशेष महत्व है
चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि की रात्रि को तारा रात्रि कहते हैं
देवी तारा के भैरव को अक्षोभय शिव कहते हैं बिना किसी क्षोभ के हलाहल विष का पान करने वाले शिव को ही अक्षोभय शिव कहते हैं।
तारा देवी पूर्व दिशा का प्रतिनिधित्व करती है।
माता तारा का निवास:-
माँ तारा का वहां गीदड़ है इसी तरह वहां शमशान में निवास करती हैतामसिक तथा विध्वंसक प्रकृति संबंध रखने वाले देवी देवता उनके निवास स्थान शमशान होता है जहां पंच महाभूत से निवृत्त अपने-अपने तत्वों में मिल जाते हैं
देवी की साधना एकलिंग शिव मंदिर अर्थात पंचकोश के मध्य एक ही शिवलिंग हो पर करने का विधान है।इनके अलावा शमशान भूमि चौराहा नरमुंड आसन पर गले तक जल में खड़े होकर या वन में करने का विधान है। इन स्थानों पर देवी की साधना शीघ्र फलदाई होती हैतारा के अनुसार देवी की साधना कुंभलासन अर्थात जिसे मुंडन संस्कार नहीं हुआ हो वैसे बालक के शव के आसन पर करने का विधान है। इनके अलावा कंबल या कुशासन पर करने का विधान है।
माता की साधना Tara mata sadhana :-
साधक को सदा ही देवी के सौम्य रूप की साधना करनी चाहिएदेवी को लाल व पीले फूल या नीले फूल नारियल व चौमुखा दीपक चढ़ाने से देवी प्रसन्न होती है
माँ तारा के तारा नाम से ज्ञात होता है कि यह तारने वाली देवी है
माता महाविद्या में दूसरे स्थान पर विद्यमान है। देवी अपने भक्तों पर वा वाक शक्ति प्रदान करने तथा भयानक विपत्तियों से भक्त की रक्षा करने में समर्थ है।
वैद्यनाथ धाम के पूर्व दिशा में उत्तर वाहिनी द्वारका नदी के पूर्वी तट पर महाशमशान में श्वेत श्री मूल के वृक्ष के मूल में देवी का त्री नेत्र गिरा था। यह स्थान उग्रतारा पीठ के नाम से जाना जाता है

रावण और मां तारा देवी:-
रावण, लंका का शक्तिशाली राक्षस-राजा, और मां तारा देवी के बीच एक दिलचस्प संबंध है। रावण ने मां तारा की पूजा की और उनका दिव्य आशीर्वाद प्राप्त करने का प्रयास किया। कई कहानियों में, रावण मां तारा की कृपा पाने के लिए विभिन्न उपाय करता है, जैसे युद्ध से पहले उनसे सुरक्षा मांगना।रावण और मां तारा देवी का संबंध:
रावण की पूजा: रावण मां तारा को शक्तिशाली और दिव्य मानते थे और उनकी पूजा करते थे. आशीर्वाद: रावण ने मां तारा से युद्ध में जीत और सुरक्षा के लिए आशीर्वाद मांगा.
वरदान:
मां तारा ने रावण को कुछ वरदान दिए, लेकिन साथ ही युद्ध के नियमों का पालन करने की शर्त भी रखी।रावण ने मां तारा से युद्ध से पहले सुरक्षा मांगी और उन्हें अपना भक्त बताया। रावण ने मां तारा की कृपा पाने के लिए विभिन्न अनुष्ठान किए और उनका सम्मान किया।रावण और मां तारा देवी के बीच का संबंध रामायण और अन्य हिंदू धार्मिक ग्रंथों में एक महत्वपूर्ण पहलू है, जिसे कई लोगों ने भी पर देखा है।

🔱 माता तारा के 10 प्रमुख मंदिर (नाम, स्थान और विशेषता सहित)
1. तारापीठ मंदिर – बीरभूम, पश्चिम बंगाल
📍 स्थान: रामपुरहाट, बीरभूम
🔹 विशेषता: यही माता तारा का सबसे प्रसिद्ध शक्तिपीठ है। मान्यता है कि यहीं माता सती की तीसरी आँख (नेत्र) गिरी थी। यह स्थान श्मशान साधना और तंत्र साधकों का मुख्य केंद्र है। ब्रह्मर्षि वशिष्ठ और बामाखेपा यहीं तारा साधना में सिद्ध हुए थे।—
2. निलाचल पहाड़ी तारा मंदिर – कामाख्या, असम
📍 स्थान: कामरूप, गुवाहाटी
🔹 विशेषता: कामाख्या शक्तिपीठ के पास स्थित, यह तारा देवी का अत्यंत रहस्यमयी और शक्तिशाली रूप है। यहाँ गुप्त नवरात्रि में विशेष तांत्रिक अनुष्ठान होते हैं।—
3. तारा देवी मंदिर – शिमला, हिमाचल प्रदेश
📍 स्थान: शिमला से 11 किमी दूर एक पहाड़ी पर
🔹 विशेषता: 250 वर्ष पुराना मंदिर, जहाँ माता तारा को शांत और सौम्य रूप में पूजा जाता है। यहाँ से हिमालय दर्शन अत्यंत सुंदर होते हैं।—
4. तारा पीठ मंदिर – वाराणसी, उत्तर प्रदेश
📍 स्थान: काशी/वाराणसी
🔹 विशेषता: यहाँ माँ तारा का तांत्रिक रूप पूजा जाता है। शिव की नगरी में स्थित यह मंदिर साधकों के लिए बेहद फलदायक माना जाता है।—
5. तारा भवानी मंदिर – ओडिशा
📍 स्थान: बालेश्वर जिला
🔹 विशेषता: यहाँ माता तारा को देवी भवानी के रूप में पूजा जाता है। हर साल तंत्र साधना और विशेष तारा हवन का आयोजन होता है।—
6. तारा माता मंदिर – सीतामढ़ी, बिहार
📍 स्थान: जानकी स्थान के निकट
🔹 विशेषता: यह मंदिर सीता माता की जन्मभूमि में स्थित है। यहाँ माता तारा को लोक-शक्ति और जनकल्याणकारी रूप में पूजा जाता है।—
7. तारा देवी मंदिर – कटक, ओडिशा
📍 स्थान: कटक शहर
🔹 विशेषता: यहाँ माँ तारा को भूत-प्रेत बाधा निवारण और कष्ट हरने वाली देवी के रूप में पूजा जाता है।—
8. तारा मंदिर – कांचीपुरम, तमिलनाडु
📍 स्थान: कांचीपुरम
🔹 विशेषता: देवी तारा का एक दुर्लभ मंदिर जहाँ दक्षिण भारत में वैदिक और तांत्रिक परंपरा का मेल होता है।—
9. तारा शक्ति पीठ – देवघर, झारखंड
📍 स्थान: बाबा बैद्यनाथ धाम के पास
🔹 विशेषता: यहाँ माता को शिव के साथ तंत्र शक्ति के रूप में पूजा जाता है। सावन और नवरात्रि में यहाँ विशेष भीड़ होती है।—
10. तारा मंदिर – उज्जैन, मध्यप्रदेश
📍 स्थान: महाकालेश्वर मंदिर के पास
🔹 विशेषता: यह मंदिर उज्जैन के तांत्रिक शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। यहाँ रात्रि में विशेष जप और साधना होती है।
तारा देवी और मां पार्वती:-
तारा, पार्वती का ही एक रूप हैं, लेकिन एक तांत्रिक रूप में. तारा को दस महाविद्याओं में से एक माना जाता है, और उन्हें शक्ति या पार्वती की एक तांत्रिक अभिव्यक्ति के रूप में देखा जाता है.
हिंदू धर्म में, पार्वती को शिव की पत्नी और शक्ति का रूप माना जाता है. तारा, पार्वती का ही एक स्वरूप है, लेकिन एक तांत्रिक रूप में, जो ज्ञान, शक्ति, और स्वतंत्रता का प्रतीक है. दस महाविद्याएं शक्ति के दस रूप हैं, जो ज्ञान, शक्ति, और मुक्ति के विभिन्न पहलुओं का प्रतिनिधित्व करती हैं. तारा इन दस महाविद्याओं में से दूसरी है, जो पार्वती के तांत्रिक रूप का प्रतिनिधित्व करती है.

मां तारा देवी और शिवाजी:-
शिव और तारा देवी के बीच एक गहरा संबंध है। ऐसा माना जाता है कि शिव देवी तारा के विकराल रूप को देखकर शांत हुए थे, और ब्रह्मा ने उनकी लज्जा निवारण के लिए व्याघ्र चर्म प्रदान किया था.
शिव और तारा देवी को एक साथ पूजा जाता है, और माना जाता है कि वे दोनों एक दूसरे के पूरक हैं. तारा देवी को शिव को शांत करने वाली देवी भी माना जाता है, जो उनके विकराल रूप को देखकर शांत हुए थे. मां तारा देवी को शिव जी की माता के रूप में भी जाना जाता है।
माता तारा देवी की साधना विधि Tara mata mantra :-
1.साधना प्रातःकाल ब्रह्ममुहूर्त में स्नान कर शांत एवं पवित्र स्थान पर करें।
2.माता तारा देवी की प्रतिमा या चित्र को लाल या नीले वस्त्र पर स्थापित करें।
3.पूजा में नीले फूल, दीपक, धूप, नारियल, काले तिल, और गुड़ का प्रयोग करें।
4.तारा देवी का बीज मंत्र “ॐ ह्रीं स्त्रीं हूं फट्” है – इसका 108 बार जाप करें।
5.जाप रुद्राक्ष या त्रिलोकी माला से करें और मंत्र के उच्चारण में स्पष्टता रखें।
6.साधना करते समय मन को एकाग्र करें और देवी का ध्यान करें – उनका उग्र किन्तु करुणामयी स्वरूप।
7.तंत्र मार्ग की साधना करने वाले यंत्र और विशेष नियमों का पालन करें।
8.साधना के अंत में देवी को नैवेद्य अर्पित करें और क्षमा प्रार्थना करें।
9.अमावस्या, मंगलवार या नवरात्रि की रात्रि को यह साधना विशेष फल देती है।
10.नियमित साधना से भय, रोग, बाधा, और तंत्र बाधा से मुक्ति मिलती है।
मां तारा देवी का महत्व 10 mahavidya mai:-
यह पीठ का महत्व कामाख्या माता की पीठ के महत्व की तरह ही अत्यंत महत्वपूर्ण है। यदि किसी का शरीर रोग युक्त है या कोई व्यक्ति पाप से पीड़ा भोग रहा है। वहां जैसे ही हृदय से तारा तारा पुकारता है माता अपने भक्त की प्रार्थना सुनकर भक्त को पीडा से मुक्त कर देती है।
इसलिए कहा गया है कि जिन्हें शिव भी तार नहीं सकते उन्हें मां तारा तारती है।
निष्कर्ष:-
मां तारा देवी के जीवन से हमें अनेक शिक्षाएं मिलती हैं। वे करुणा, सुरक्षा, और मुक्ति की प्रतीक हैं। उनकी साधना और पूजा से हमें आध्यात्मिक उन्नति, मानसिक शांति, और सुख प्राप्त होता है। वे हमें जीवन के कष्टों से उबरने और सही मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती हैं।
माँ तारा और भगवान शिव का संगम हमें यह सिखाता है कि करुणा और शक्ति जब एक साथ हो, तब हर असंभव भी संभव हो जाता है। — जय माँ तारा, हर हर महादेव!
One Response
Nice blog