
प्रस्तावना:-
माता त्रिपुरा सुंदरी हिंदू धर्म की दस महाविद्याओं में प्रमुख स्थान रखती हैं और उन्हें सौंदर्य, शक्ति और ज्ञान की देवी माना जाता है। ‘त्रिपुरा’ का अर्थ है तीनों लोकों (स्वर्ग, पृथ्वी और पाताल) की अधीश्वरी, और ‘सुंदरी’ अर्थात अनुपम सौंदर्य की प्रतीक। वे श्रीविद्या उपासना की अधिष्ठात्री देवी हैं और संपूर्ण ब्रह्मांड की मूल शक्ति मानी जाती हैं। उनका स्वरूप सौम्य, मोहक और दिव्य है, परंतु वे अजेय और शक्तिशाली भी हैं।
उन्हें आदि शक्ति, ललिता देवी और राजराजेश्वरी के रूप में भी पूजा जाता है। माता त्रिपुरा सुंदरी प्रमुख मंदिर त्रिपुरा राज्य के उदयपुर में स्थित है, जो शक्तिपीठों में गिना जाता है। उनकी उपासना से मोक्ष, भोग, विद्या और आत्मज्ञान प्राप्त होता है। वे भक्तों को सौंदर्य, वैभव और आध्यात्मिक उन्नति प्रदान करने वाली माँ हैं।
मां त्रिपुरा सुंदरी Tripura sundari कैसे प्रकट हुई:-
माता त्रिपुरा सुंदरी जिन्हे ललिता सुंदरी भी कहा जाता है। हिंदू धर्म की दस महाविद्याओं में से एक है। और आदिशक्ति का सर्वोच्च रूप मानी जाती है। उनकी उत्पत्ति के संबंध में कहानी पुरानी कथाएं हैं जो उनके दिव्य स्वरूप और शक्तियों को दर्शाती है
1. ब्रह्मांड की सृजनकर्ता के रूप में:-
माता त्रिपुरा सुंदरी रहस्य ग्रंथ के अनुसार, सृष्टि की उत्पत्ति से पहले केवल देवी त्रिपुरा सुंदरी की अस्तित्व में थी। उन्होंने इच्छा ज्ञान और क्रिया के माध्यम से ब्रह्मा विष्णु और शिव को उत्पन्न किया जो सृष्टि के पालन और संहार के प्रतीक है इस कथा में देवी को परम चेतना और शक्ति का स्रोत माना गया है।
2. भांडासुर के वध की कथा:-
एक अन्य कथा के अनुसार जब भगवान शिव ने कामदेव को भस्म में किया था तो उसकी राख भंडासुर नामक राक्षस उत्पन्न हुआ। उसने तीनों लोकों में आतंक फैलाया। देवताओं ने इस संकट से मुक्ति पाने के लिए महायज्ञ किया। जिसमें संपूर्ण सृष्टि की आहुति दी गई। इस यज्ञ की अग्नि से देवी त्रिपुरा सुंदरी प्रकट हुई और उन्होंने भंडासुर का वध कर सृष्टि का संतुलन स्थापित किया।
3. शिव को आकर्षित करने के लिए रूपांतरण:-
कुछ बताओ मैं उल्लेख मिलता है की माता पार्वती में भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए त्रिपुरा सुंदरी का रूप धारण किया था इस रूप में उन्होंने उनके अनुपम सौंदर्य और शक्ति से शिव को मोहित किया था और उनके साथ विवाह किया।
मां त्रिपुरा सुंदरी का विवाह:-
माता त्रिपुरा सुंदरी का विवाह का स्पष्ट उल्लेख सामान्य पौराणिक ग्रंथों में बहुत विस्तृत रूप में नहीं मिलता, क्योंकि वे आदिशक्ति या पराशक्ति के रूप में मानी जाती हैं — जो स्वयं सृष्टि की जननी हैं और उनसे ही सभी देवता उत्पन्न हुए हैं। फिर भी कुछ परंपराएं और तंत्र शास्त्रों के अनुसार उनके विवाह के कुछ रूपों की व्याख्या की गई है:
1. शिव के साथ विवाह (ललिता त्रिपुरा सुंदरी और कदंबनाथ)
तंत्र और श्रीविद्या परंपरा के अनुसार, माता त्रिपुरा सुंदरी को कदंबनाथ या शिव के साथ जोड़ा गया है। जब देवी ने भांडासुर का वध किया, तो उन्होंने एक रूप धारण किया जो शिव से युक्त था — इस कारण उन्हें ललिता-अंबिका कहा गया और शिव को कदंबनाथ। यह रूप श्रीचक्र के केंद्र में विराजमान होता है — जहाँ शिव और शक्ति का मिलन होता है।
2. आद्या शक्ति के रूप में — विवाह से परे
कई शाक्त परंपराओं में माता त्रिपुरा सुंदरी को स्वतंत्र, अखंड और परब्रह्मस्वरूपिणी माना गया है, जिनका विवाह किसी पुरुष देवता से नहीं हुआ।उनके सौंदर्य, प्रेम और करुणा के प्रतीक होने के कारण उन्हें “श्रृंगार रस” की अधिष्ठात्री देवी कहा गया, परन्तु वे पूर्णतया आत्मनिर्भर और मुक्त मानी जाती हैं।
3. तांत्रिक अर्थ में शिव-शक्ति मिलन
माता त्रिपुरा सुंदरी और शिव का मिलन, तांत्रिक दृष्टिकोण से, जड़ (शिव) और चेतना (शक्ति) के योग का प्रतीक है।यह विवाह आध्यात्मिक है, जहाँ साधक की आत्मा ब्रह्म के साथ एकाकार होती है।
मां त्रिपुरा सुंदरी के अन्य नाम:-
माता त्रिपुरा सुंदरी के अनेक नाम हैं, जो उनके विभिन्न स्वरूपों, शक्तियों और लीलाओं का वर्णन करते हैं। ये नाम मुख्यतः श्रीविद्या, ललिता सहस्रनाम, तंत्र शास्त्रों और शाक्त परंपरा में मिलते है।
1.ललिता – जो सरलता और सौंदर्य से युक्त हैं
2.राजराजेश्वरी – सभी राजाओं की अधिपति देवी
3.कामेश्वरी – काम (सृजन शक्ति) की अधिष्ठात्री देवी
4.श्रीविद्या – दिव्य ज्ञान स्वरूपा
5.राजमातंगी – ज्ञान और कला की देवी
6.श्रीचक्रेश्वरी – श्री यंत्र (श्रीचक्र) की अधिष्ठात्री
7.महात्रिपुरासुंदरी – तीनों लोकों में सुंदरता की परम देवी
8.बालात्रिपुरासुंदरी – बालिका रूप में देवी
9.श्यामला – काले वर्ण वाली सौंदर्यवती
10.कामकला – सृजन की सूक्ष्म शक्ति
11.सौंदर्यलहरी – सौंदर्य की लहर स्वरूपा
12.चिदग्नि कुंड सम्भूता – चैतन्य अग्नि से उत्पन्न
13.पराशक्ति – परम शक्ति स्वरूपा
14.ललिता अंबा – प्रेममयी माँ
15.मूलप्रकृति – समस्त सृष्टि की जड़ कारण
16.त्रिकोणेश्वरी – श्रीचक्र के त्रिकोण की अधिष्ठात्री
17.कामराजमंडल वासिनी – कामदेव के मंडल में निवास करने वाली
18.पंचदशीमाता – पंचदशी मंत्र की देवी
19.स्वयम्लता – स्वयं प्रकाशित और स्वतंत्र देवी
20.सर्वमंगला – जो समस्त मंगल प्रदान करती हैं

मां त्रिपुरा सुंदरी का वाहन:-
माता त्रिपुरा सुंदरी का वाहन अत्यंत विशिष्ट और दिव्य है, जो उनके रूप, शक्तियों और सौंदर्य का प्रतीक माना जाता है।त्रिपुरा सुंदरी का वाहन: श्रीचक्र रथ (सिंहासन पर ब्रह्मांडीय रथ)देवी त्रिपुरा सुंदरी का वाहन कोई सामान्य पशु नहीं, बल्कि एक दिव्य रथ (श्रीचक्र रथ या चक्रराज रथ) है। यह रथ श्री यंत्र (श्रीचक्र) के रूप में होता है, जो नवचक्रों से युक्त होता है और ब्रह्मांडीय ऊर्जा का प्रतीक है। इस रथ को चार देवता खींचते हैं:
1. ब्रह्मा (पूर्व दिशा)
2. विष्णु (दक्षिण)
3. रुद्र/शिव (पश्चिम)
4. ईशान (उत्तर)
यह रथ 10 मुद्राओं और 10 महाविद्याओं से सुसज्जित होता है।इसे “चक्रराज रथ” या “श्रीचक्र रथ” कहा जाता है। देवी इसमें बैठी होती हैं “सिंहासनस्थ” मुद्रा में, और उन्हें सिंह (शेर) पर भी आसीन दर्शाया जाता है, जो शक्ति का प्रतीक है।
मां त्रिपुरा सुंदरी के रूप का वर्णन:-
माता त्रिपुरा सुंदरी का रूप अत्यंत दिव्य, मोहक और सौंदर्य से परिपूर्ण है। उनका स्वरूप शृंगार, सौंदर्य, ज्ञान, और शक्ति का संपूर्ण संगम माना जाता है। ललिता सहस्रनाम, त्रिपुरारहस्य और अन्य तांत्रिक ग्रंथों में उनके सौंदर्य और तेज का बहुत सुंदर वर्णन मिलता है।
1.आयु और भाव:
देवी एक १६ वर्षीया कन्या के रूप में मानी जाती हैं — यह युवावस्था का प्रतीक है, जिसमें सौंदर्य, उत्साह और चेतना चरम पर होती है। वे सदा स्मित मुस्कान और करुणामयी दृष्टि से युक्त रहती हैं।
2.वर्ण और तेज:
उनका वर्ण रक्ताम्बर (गुलाबी-लाल) या कुंद पुष्प के समान उज्ज्वल बताया गया है।। उनका शरीर चंद्रमा के समान चमकीला और रक्त कमल के समान लालिमा लिए हुए है।
3.नेत्र और मुख:
उनकी तीन आँखें होती हैं — जो भूत, भविष्य और वर्तमान पर दृष्टि रखने का संकेत है। नेत्र कमलदल समान विशाल, शीतल और मधुर होते हैं। उनका मुखचंद्रमा के समान उज्ज्वल और आकर्षक है।
4.आभूषण और वस्त्र:
वे मणियों, रत्नों और सोने के आभूषणों से सजी होती हैं। उनका वस्त्र लाल रेशमी होता है, जिस पर स्वर्ण कढ़ाई होती है। वे नवदुर्गंधित पुष्पों से सजी होती हैं और शरीर पर चंदन का लेप होता है।
5.हाथों में अस्त्र-शस्त्र:
देवी के चार भुजाएँ होती हैं:
एक में पाश (बंधन)
दूसरे में अंकुश (आकर्षण)
तीसरे में शब्दबाण (प्रेम)
चौथे में स्मेर मुद्रा (वरदान और करुणा)
6.सिंहासन और वाहन:
वे श्रीचक्र के मध्य कमल के सिंहासन पर विराजमान हैं।
वे सप्तलोकों से भी ऊपर विराजमान होती हैं — महा त्रिकोण के केंद्र में। देवी त्रिपुरा सुंदरी का रूप अत्यंत मधुर, सौंदर्यमयी और दिव्य है, जो न केवल शारीरिक सौंदर्य का प्रतीक है, बल्कि आत्मिक जागरण, करुणा और ब्रह्म चेतना की अधिष्ठात्री हैं।
देवी त्रिपुरा सुंदरी के रहस्य:-
देवी त्रिपुरा सुंदरी की रहस्यमयी कथाएँ तंत्र, शाक्त और श्रीविद्या परंपरा में अत्यंत गूढ़, रहस्यमयी और चमत्कारों से युक्त हैं। ये कथाएँ केवल धार्मिक नहीं बल्कि आध्यात्मिक, मनोवैज्ञानिक और ब्रह्मज्ञान से जुड़ी होती हैं। नीचे कुछ प्रमुख और रहस्यमयी कहानियाँ प्रस्तुत हैं:
1.भांडासुर वध की रहस्यमयी कथा (ललिता उपाख्यान से)भांडासुर नामक असुर ने ब्रह्मा से वरदान पाकर देवताओं को पराजित कर दिया। सभी देवताओं ने एक महायज्ञ किया, जिससे अग्निकुंड से देवी त्रिपुरा सुंदरी प्रकट हुईं। उन्होंने श्रीचक्र रथ पर चढ़कर 32 करोड़ शक्तियों के साथ भांडासुर का वध किया।
यह युद्ध सिर्फ बाहरी नहीं था — बुराई, अज्ञान और अहंकार का अंत करने वाली कथा है। भांडासुर का वध एक गूढ़ तांत्रिक प्रक्रिया भी मानी जाती है, जो साधक के भीतर की राक्षसी वृत्तियों का अंत करती है।
2.शिव का मोहित होना – सौंदर्य का रहस्यजब शिव समाधि में लीन थे, देवी त्रिपुरा सुंदरी ने अपना दिव्य रूप दिखाया।शिव भी उस रूप से मोहित हो उठे। यह कथा कहती है:”जो शिव को भी मोहित कर दे, वही त्रिपुरा सुंदरी है।”यह कथा दर्शाती है कि देवी का सौंदर्य केवल रूप का नहीं, ब्रह्मज्ञान और करुणा का सौंदर्य है।
3.त्रिपुरारहस्य – आत्मज्ञान की कथात्रिपुरारहस्य नामक ग्रंथ में देवी द्वारा दत्तात्रेय को सावित्री, ध्यान, ज्ञानयोग आदि की शिक्षा देने की कथा है। राजा जनक, कपिल मुनि आदि को त्रिपुरा देवी के ध्यान से मोक्ष प्राप्त हुआ।यह कथा बताती है कि देवी साक्षात ब्रह्म हैं — जो सच्चिदानंद स्वरूप हैं।
4.श्रीचक्र रहस्य: देवी श्रीचक्र के मध्य बिंदु पर निवास करती हैं। श्रीचक्र में ९ आवरण हैं, जो साधक की चेतना के विभिन्न स्तर दर्शाते हैं।प्रत्येक चक्र पार करने पर साधक के भीतर देवी की शक्ति जागृत होती है। यह संपूर्ण प्रक्रिया ब्रह्म की ओर यात्रा का रहस्य है।
5.बालात्रिपुरासुंदरी की गूढ़ कथा: एक कथा में देवी बालिका के रूप में एक तांत्रिक साधक के सामने प्रकट हुईं। साधक ने उन्हें साधारण कन्या समझकर तिरस्कार किया, तब देवी ने कालस्वरूप धारण कर उसे चेताया।संदेश था: “जहाँ ज्ञान नहीं, वहाँ शक्ति भी विनाश बन जाती है।”
6.वाणी का नियंत्रण – देवी का इशाराएक बार एक साधक ने देवी से साक्षात् दर्शन की प्रार्थना की।देवी ने कहा: “मौन रहो, शब्द से ऊपर जाओ, तब मैं प्रकट होऊँगी।”साधक ने वर्षों मौन साधना की, अंततः देवी के निर्गुण रूप में दर्शन हुए।
मां त्रिपुरा सुंदरी की तांत्रिक विद्या tripura sundari mantra :-
मां त्रिपुरा सुंदरी तंत्र शास्त्र की सबसे उच्चतम और रहस्यमयी देवियों में से एक मानी जाती हैं। वे श्रीविद्या तंत्र की अधिष्ठात्री देवी हैं, और उन्हें महाविद्याओं में सर्वश्रेष्ठ, दशमहाविद्याओं की मध्य शक्ति, तथा साक्षात ब्रह्मविद्या माना गया है।
1. श्रीविद्या तंत्र :
यह तंत्र, मंत्र, यंत्र और ध्यान की एक दिव्य पद्धति है जिसमें साधक त्रिपुरा सुंदरी की उपासना करता है। इसका उद्देश्य केवल पूजा नहीं, बल्कि आत्मा का परमात्मा से मिलन (मोक्ष) है।इसे गुप्ततम विद्या कहा गया है – केवल योग्य, गुरु द्वारा दीक्षित साधक ही इसे साध सकते हैं।
2. मंत्र और रहस्य:
पंचदशी मंत्र (15 अक्षरों वाला) ।त्रिपुरा सुंदरी की तांत्रिक उपासना में सबसे प्रमुख मंत्र।यह तीन भागों में बंटा होता है:कूट-त्रयी – इच्छाशक्ति, ज्ञानशक्ति, क्रियाशक्तिगूढ़, केवल दीक्षा के बाद बोला जाता है।मंत्र जप से साधक का चित्त स्थिर, शक्तिशाली और दिव्य होता है।
षोडशी मंत्र (16 अक्षरों वाला): यह त्रिपुरा सुंदरी की पूर्णता को दर्शाता है।पंचदशी से भी गूढ़ और उच्च स्तर की साधना मानी जाती है।
3. श्रीचक्र –
तांत्रिक यंत्रत्रिपुरा सुंदरी का निवास स्थान – श्री यंत्र या श्रीचक्र।
इसमें 9 चक्र (आवरण) होते हैं – प्रत्येक साधना का एक स्तर है।
बिंदु स्थान पर देवी स्वयं विराजमान होती हैं।
4. साधना के लाभ:
भौतिक समृद्धिमानसिक संतुलनआत्मिक जागरणब्रह्मज्ञान की प्राप्ति होती है।
5. तांत्रिक साधना की विशेषताएं:-
गुरु दीक्षा आवश्यक – बिना गुरु के यह विद्या साध्य नहीं।गुप्तता आवश्यक – मंत्र और यंत्र का रहस्य किसी से साझा नहीं किया जाता।
नियमितता, ब्रह्मचर्य, और शुद्धता का पालन करना होता है।मौन साधना, ध्यान, त्राटक, यंत्र पूजा इसके प्रमुख अंग हैं।
6. त्रिपुरा रहस्य ग्रंथ –
तांत्रिक ज्ञान का स्रोत त्रिपुरा रहस्य ग्रंथ में देवी की उपासना, ब्रह्मज्ञान, तांत्रिक साधना, ध्यान योग आदि विस्तार से बताए गए हैं। इसे भगवान दत्तात्रेय ने रचाया और पराशक्ति की व्याख्या की।
माता त्रिपुर सुंदरी का निवास:
माता त्रिपुरा सुंदरी का निवास स्थान कई स्तरों पर वर्णित है — भौतिक (स्थूल), दिव्य (सूक्ष्म) और आध्यात्मिक (परम)।
1. आध्यात्मिक निवास – श्रीचक्र के बिंदु में
त्रिपुरा सुंदरी का मुख्य निवास माना गया है “श्रीचक्र” का मध्य बिंदु (बिंदुस्थान), जिसे सहस्रार या ब्रह्म स्थान भी कहते हैं।यह साक्षात ब्रह्म का स्थान है। साधक जब श्रीचक्र की साधना करता है, तो वह अंततः देवी को इसी बिंदु में अनुभव करता है।
2. दिव्य लोक – “मणिद्वीप”
देवी का दिव्य लोक है मणिद्वीप, जो सप्त समुद्रों के पार, सुधासागर में स्थित है। मणिद्वीप को शास्त्रों में स्वर्ग से भी श्रेष्ठ और परम तेजस्वी लोक माना गया है। यहाँ देवी चतुर्भुजा रूप में, कमल के सिंहासन पर विराजती हैं, और उन्हें सेवा देने वाले हैं:
लक्ष्मी, सरस्वती, ब्रह्मा, विष्णु, रुद्र, इंद्र, आदि भी।
माता त्रिपुर सुंदरी की साधनाविधि:-
1.साधना आरंभ करने से पहले स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण करें और शांत स्थान पर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठें।
2.पूजा स्थान को स्वच्छ कर वहाँ त्रिपुरा सुंदरी की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
3.माँ को लाल पुष्प, चंदन, कमल गट्टा और सुगंधित धूप-दीप अर्पित करें।
4.त्रिपुरा सुंदरी की मूल मंत्र “ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं सौः” का जाप करें।
5.यह जाप न्यूनतम 108 बार रुद्राक्ष या स्फटिक की माला से करें।
6.साधना के दौरान ध्यान रखें कि मन एकाग्र और निष्ठावान रहे।
7.नवरात्रि या पूर्णिमा जैसे विशेष दिनों में यह साधना विशेष फलदायी मानी जाती है।
8.त्रिपुरा सुंदरी के श्रीचक्र या यंत्र की पूजा भी साधना का मुख्य अंग है।
9.साधना के अंत में माता से आशीर्वाद और क्षमा प्रार्थना करें।
10.नियमित साधना से आत्मबल, सौंदर्य, समृद्धि और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त होती है।

माँ त्रिपुरा सुंदरी के 10 प्रमुख मंदिरों के नाम, उनकी विशेषताएँ और स्थान — हिंदी में विस्तार से Tripura sundari mandir:
🌺 1. त्रिपुरा सुंदरी मंदिर, त्रिपुरा (त्रिपुरा सुंदरी शक्तिपीठ)
📍स्थान: उदयपुर, त्रिपुरा
🔸विशेषता: 51 शक्तिपीठों में से एक। कहा जाता है कि यहाँ माता सती का दायां पाँव गिरा था। माता की काली पत्थर की मूर्ति और त्रिकोणाकार तालाब “कमल सागर” यहाँ प्रसिद्ध है।
🌺 2. ललिता त्रिपुरा सुंदरी मंदिर, तमिलनाडु
📍स्थान: तिरुवन्नामलाई
🔸विशेषता: यहाँ त्रिपुरा सुंदरी को ललिता देवी के रूप में पूजा जाता है। यह स्थान “श्री विद्या साधना” और श्री चक्र पूजा का विशेष केंद्र है।
🌺 3. त्रिपुरेश्वरी मंदिर, बनभट्टपुर (छत्तीसगढ़)
📍स्थान: राजनांदगांव जिला
🔸विशेषता: माँ त्रिपुरा सुंदरी को महाशक्ति के रूप में पूजा जाता है। मंदिर में नौ नवरात्रों के समय विशेष पूजा और शक्ति साधनाएं की जाती हैं।
🌺 4. त्रिपुरा सुंदरी मंदिर, हिमाचल प्रदेश
📍स्थान: नग्गर, कुल्लू
🔸विशेषता: लकड़ी की पारंपरिक पहाड़ी वास्तुकला में बना यह मंदिर शांत वातावरण और शक्तिशाली ऊर्जा के लिए प्रसिद्ध है।
🌺 5. त्रिपुरमालिनी मंदिर, कांचीपुरम (तमिलनाडु)
📍स्थान: कांचीपुरम
🔸विशेषता: यह मंदिर देवी त्रिपुरा सुंदरी के एक रूप त्रिपुरमालिनी को समर्पित है। यहाँ तांत्रिक साधनाओं के लिए कई साधक आते हैं।
🌺 6. त्रिपुरा सुंदरी मंदिर, वाराणसी (उत्तर प्रदेश)
📍स्थान: वाराणसी
🔸विशेषता: यह मंदिर गुप्त साधना, त्रिपुरासुंदरी उपासना और श्री विद्या पूजा का प्रमुख स्थल माना जाता है। काशी में स्थित इस मंदिर का अत्यधिक आध्यात्मिक महत्व है।
🌺 7. त्रिपुरा सुंदरी मंदिर, अंबरनाथ (महाराष्ट्र)
📍स्थान: अंबरनाथ, मुंबई
🔸विशेषता: यह मंदिर आधुनिक होने के बावजूद शक्ति साधकों के लिए बहुत पवित्र स्थल माना जाता है। विशेषतः तांत्रिक पूजा के लिए प्रसिद्ध है।
🌺 8. मीनाक्षी मंदिर (त्रिपुरा सुंदरी स्वरूप), मदुरै (तमिलनाडु)
📍स्थान: मदुरै
🔸विशेषता: मीनाक्षी देवी को त्रिपुरा सुंदरी के स्वरूप में भी पूजा जाता है। मंदिर की वास्तुकला और दिव्यता अपूर्व है।
🌺 9. त्रिपुरा सुंदरी गुफा मंदिर, झारखंड
📍स्थान: रांची के पास
🔸विशेषता: यह एक गुफा मंदिर है जहाँ त्रिपुरा सुंदरी की मूर्ति स्थित है। साधक यहाँ ध्यान एवं मौन साधना के लिए आते हैं।—
🌺 10. त्रिपुरा देवी मंदिर, श्रीनगर (जम्मू-कश्मीर)
📍स्थान: श्रीनगर
🔸विशेषता: त्रिकुट पर्वत के पास स्थित यह मंदिर शांत प्रकृति और दिव्य शक्ति का संगम है। माता त्रिपुरा को सुंदर रूप में यहाँ पूजा जाता है।

त्रिपुरा सुंदरी mata Tripura sundari और माता पार्वती Mata parvati :-
ये दोनों देवी आदिपराशक्ति के रूप हैं, जो सृष्टि, स्थिति और संहार की कारणभूता हैं। देवी त्रिपुरा सुंदरी को पार्वती का ही अंतर्मुखी तांत्रिक रूप कहा जाता है, जो श्रीचक्र और श्रीविद्या की अधिष्ठात्री हैं। कालिका पुराण, त्रिपुरारहस्य, ललिता सहस्रनाम, आदि ग्रंथों में त्रिपुरा सुंदरी को शिव-पार्वती की उच्चतम अवस्था का रूप बताया गया है। दोनों देवियाँ बाल रूपों में भी पूजित होती हैं — बालिका अवस्था में सौंदर्य, निश्छलता और ऊर्जा का प्रतीक।
निष्कर्ष:-
मां त्रिपुरा सुंदरी हमें प्रेम, सौंदर्य और शक्ति को एक साथ कैसे समेटें। उनकी पूजा से हमें सुंदरता, आकर्षण, और वैवाहिक जीवन में प्रेम और शांति के साथ-साथ सकारात्मक ऊर्जा और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। मां का जीवन हमें आध्यात्मिक उन्नति और मोक्ष प्राप्ति का मार्ग दिखता है।
One Response
Good 😊😊