माँ भुवनेश्वरी: ब्रह्मांड की रचयिता और सौम्यता की देवी

प्रस्तावना:-

माता भुवनेश्वरी Mata bhuvneshwari दस महाविद्याओं में चतुर्थ स्थान पर विराजमान हैं और सम्पूर्ण ब्रह्मांड की अधिष्ठात्री देवी मानी जाती हैं। ‘भुवनेश्वरी’ शब्द का अर्थ है – “भुवन (जगत) की स्वामिनी”, यानी वे त्रैलोक्य की अधिपति हैं। उनका स्वरूप सौम्य, सुंदर, और तेजस्वी होता है, जो चतुर्भुजा एवं चंद्रमुखी है। वे सृष्टि की उत्पत्ति, स्थिति और संहार की शक्ति हैं। माता भुवनेश्वरी को ब्रह्मांडीय चेतना (कॉस्मिक एनर्जी) का रूप माना जाता है। उनका वर्ण लालिमा लिए हुए होता है और वे सूर्य के समान दीप्तिमान हैं। श्रीविद्या साधना में उन्हें अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। उनकी उपासना से जीवन में ऐश्वर्य, स्थिरता, और आत्मज्ञान की प्राप्ति होती है। वे भक्तों को शांति, शक्ति और समृद्धि प्रदान करने वाली करुणामयी देवी हैं।

माता भुवनेश्वरी कैसे प्रकट हुई:-

माता भुवनेश्वरी की उत्पत्ति की कथा देवी तंत्र, श्रीविद्या और शाक्त ग्रंथों में विस्तार से वर्णित है। भुवनेश्वरी देवी दस महाविद्याओं में एक प्रमुख शक्ति हैं और उन्हें संपूर्ण सृष्टि की जननी माना जाता है। उनकी उत्पत्ति से जुड़ी कहानी तांत्रिक और पौराणिक दृष्टि दोनों से अत्यंत महत्वपूर्ण है।जब ब्रह्मांड में चारों ओर केवल अंधकार था, ना कोई तत्व था, ना ही कोई समय, उस शून्य में आदि शक्ति ने स्वयं को भुवनेश्वरी के रूप में प्रकट किया।

उनके प्रकट होते ही समय, दिशा, शब्द, सृजन और चेतना का आरंभ हुआ। यह माना जाता है कि त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) के उत्पन्न होने से भी पूर्व माता भुवनेश्वरी ने अपने संकल्प से सृष्टि की रचना की योजना बनाई।

देवी भागवत पुराण और तंत्र शास्त्रों में यह वर्णन है कि जब देवी सती ने दक्ष यज्ञ में आत्मदाह किया और बाद में पार्वती के रूप में प्रकट हुईं, तब वे दस महाविद्याओं के रूप में प्रकट हुई थीं – उनमें से एक रूप भुवनेश्वरी भी था। वे माता पार्वती का ही एक विशिष्ट तांत्रिक रूप मानी जाती हैं।

माता भुवनेश्वरी को श्रीविद्या उपासना में “श्रीमत्ता” और “महात्रिपुरसुंदरी” की पूर्ववर्ती शक्ति माना गया है। वे स्वरूपा शक्ति हैं, जो चेतन ब्रह्म (शिव) को क्रियाशील बनाती हैं।उन्होंने ही ब्रह्मा को सृजन, विष्णु को पालन और रूद्र को संहार की शक्ति प्रदान की।

माता भुवनेश्वरी के अन्य नाम:-

माता भुवनेश्वरी को शास्त्रों में कई अन्य नामों से भी जाना जाता है, जो उनके स्वरूप, शक्तियों और भूमिकाओं को दर्शाते हैं। नीचे उनके प्रमुख अन्य नाम दिए गए हैं:

1.त्रिभुवनेश्वरी – तीनों लोकों की स्वामिनी

2.श्रीमत्ता – धन, वैभव और सौंदर्य की अधिष्ठात्री

3.राजराजेश्वरी – समस्त राजाओं की अधिपति देवी

4.जगदम्बा – सम्पूर्ण जगत की माता

5.विश्वमाता – समस्त सृष्टि की जननी

6.ललिता – कोमलता और सौंदर्य की प्रतीक

7.कामेश्वरी – काम (सृजन) की अधिपति देवी

8.महाशक्ति – संपूर्ण ब्रह्मांड की शक्ति

9.पराशक्ति – परम तत्व की शक्ति

10.मूलप्रकृति – सम्पूर्ण सृष्टि की मूल प्रकृति

11.श्रीविद्या – परम गूढ़ तांत्रिक विद्या की अधिष्ठात्री

12.दशमहाविद्या जननी – दस महाविद्याओं की मुख्य रूप

13.शिवा – शिव की शक्ति और अर्धांगिनी

14.अष्टादशविद्या रूपिणी – अठारह विद्याओं की स्वरूपा

15.मायामयी – माया की स्वामिनी।

“भुवनेश्वरी” का शाब्दिक अर्थ है – ‘भुवनों (संपूर्ण लोकों या ब्रह्मांड) की स्वामिनी’।

अर्थात वह देवी जो संपूर्ण सृष्टि, त्रिलोक (भू: पृथ्वी, भुव: अंतरिक्ष, स्व: स्वर्ग) की अधीश्वरी हैं।

माता भुवनेश्वरी का विवाह:-

माता भुवनेश्वरी को शिव की शक्ति और उनकी आधी अंगिनी कहा गया है। जब आदि शक्ति ने सृष्टि रचना के लिए पुरुष और प्रकृति के रूप में स्वयं को विभाजित किया, तब वे भुवनेश्वरी (प्रकृति) और शिव (पुरुष/ब्रह्म) रूप में प्रकट हुए।

इस मिलन को ही तांत्रिक परंपरा में दिव्य विवाह कहा गया है – जहाँ शक्ति और शिव का योग होता है।

माता भुवनेश्वरी और शिव का विवाह चेतना और शक्ति, पुरुष और प्रकृति, और अव्यक्त और व्यक्त तत्वों के बीच दिव्य संयोग को दर्शाता है। उनका यह विवाह संपूर्ण सृष्टि की रचना और संचालन का आधार माना जाता है।

माता भुवनेश्वरी का निवास स्थान:-

माता भुवनेश्वरी का निवास स्थान पौराणिक, तांत्रिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से विशेष महत्व रखता है। उनके निवास स्थान को “श्रीपुर”, “मणिद्वीप”, या “सहस्रदल कमल” के रूप में वर्णित किया गया है।

1. मणिद्वीप (Manidvipa) – दिव्य निवास:

मणिद्वीप को माता भुवनेश्वरी का परम निवास कहा गया है।यह स्थान सप्त समुंदरों के पार स्थित है, जहाँ दिव्य रत्नों से बना नगर है – जिसे श्रीपुर भी कहते हैं। वहाँ पर माता सहस्रदल कमल के मध्य स्थित सिंहासन पर विराजमान रहती हैं। यह विवरण मुख्य रूप से देवी भागवत पुराण, तंत्र ग्रंथों और श्रीविद्या उपासना में मिलता है।

2. त्रिलोक में व्यापक रूप से व्याप्त:

माता भुवनेश्वरी को त्रिलोक की अधीश्वरी कहा जाता है — इसलिए वे भू (पृथ्वी), भुवः (अंतरिक्ष), स्वः (स्वर्ग) तीनों लोकों में सर्वत्र निवास करती हैं। वे संपूर्ण ब्रह्मांड में व्यापक और अंतर्यामी हैं।

3. सहस्रार चक्र (आध्यात्मिक निवास):

योग और तांत्रिक साधना में माता भुवनेश्वरी का निवास मानव शरीर के सहस्रार चक्र (सिर के ऊपर स्थित ऊर्जा केंद्र) में माना जाता है। वहाँ वे शुद्ध चेतना और ब्रह्मज्ञान के रूप में विद्यमान रहती हैं।

माता भुवनेश्वरी के रहस्य:-

माता भुवनेश्वरी की रहस्यमयी कथा तांत्रिक, पौराणिक और ब्रह्मांडीय रहस्यों से जुड़ी है। वे केवल एक देवी नहीं, बल्कि साक्षात् सृष्टि की अधिष्ठात्री, समय की नियंता, और माया की स्वामिनी हैं। नीचे उनकी एक रहस्यमयी और दुर्लभ कथा प्रस्तुत है, जो देवी भागवत, तंत्र साहित्य और मौखिक परंपराओं से प्रेरित है:

मणिद्वीप और ब्रह्मांड की रचना –

बहुत प्राचीन समय की बात है, जब न कोई सृष्टि थी, न देवता, न मनुष्य, न समय, केवल एक महाशून्य था। उस शून्य में भी एक चेतन शक्ति थी – आदि शक्ति, जो स्वयंभू थीं। उन्होंने अपने संकल्प से एक दिव्य स्थान की रचना की – उसे कहा गया मणिद्वीप, जो सातों समुद्रों के पार रत्नों से बना एक दिव्य लोक था। इस मणिद्वीप के केंद्र में प्रकट हुईं माता भुवनेश्वरी – लाल आभा युक्त, सौम्य, तेजस्विनी और सौंदर्य की चरम सीमा। वे सहस्रदल कमल के ऊपर शिव के साथ सिंहासन पर विराजमान हुईं। उनके चारों ओर दसों दिशाएं, काल, पंचतत्व और देवगण अस्तित्व में आए।

सृष्टि की रहस्यमयी योजना-

माता भुवनेश्वरी ने तीन नेत्रों वाले, पंचमुखी शिव को आदेश दिया – “अब समय है सृष्टि के विस्तार का।” तब शिव ने अपनी शक्ति तीन रूपों में बांटा:

ब्रह्मा (सृजन)

विष्णु (पालन)

महेश (संहार)

परंतु इन देवताओं में चेतना नहीं थी। वे केवल निष्क्रिय ऊर्जा थे।माता भुवनेश्वरी ने अपने संकल्प और शक्ति से तीनों देवों में प्राण फूंके, उन्हें शक्तियुक्त किया, और इस प्रकार सृष्टि का चक्र प्रारंभ हुआ।

माया का रहस्य-

कहा जाता है कि जिन योगियों और साधकों ने गहन साधना के माध्यम से भुवनेश्वरी देवी के दर्शन किए, वे इस माया-जगत की असलियत जान गए और उनमें सांसारिक आकर्षण लुप्त हो गया।माता भुवनेश्वरी स्वयं कहती हैं:

“मैं ही माया हूँ, मैं ही सत्य हूँ। जो मुझे जान गया, वह मुक्त है।”

माता भुवनेश्वरी समय से परे हैं – उनके लिए भूत, भविष्य और वर्तमान एक साथ हैं ‌। वे स्वप्न और जाग्रत के मध्य का मार्ग हैं – जहाँ केवल ध्यानस्थ साधक ही प्रवेश कर सकता है।वे प्रत्येक कण में व्याप्त होकर भी अदृश्य रहती हैं – यही उनका सबसे बड़ा रहस्य है।

माता भुवनेश्वरी का स्वरूप:-

माता भुवनेश्वरी का स्वरूप अत्यंत दिव्य, सौम्य और रहस्यमयी है। उनका रूप न केवल भौतिक रूप से सुंदर है, बल्कि उसमें ब्रह्मांडीय शक्ति, करुणा और चेतना का अद्भुत संतुलन होता है। शास्त्रों में उन्हें “त्रिभुवन की स्वामिनी”, “माया की अधीश्वरी” और “संपूर्ण सृष्टि की जननी” कहा गया है।

1. वर्ण (रंग):-

उनका शरीर लालिमा युक्त सुनहरे प्रकाश से दमकता है।उन्हें शोणवर्णा (गुलाबी या रक्तवर्णी) कहा गया है, जो प्रेम, शक्ति और सृजन का प्रतीक है।

2. मुख और नेत्र:-

उनका मुखमंडल चंद्रमा के समान तेजोमय होता है।उनके तीन नेत्र हैं – जो त्रिकाल (भूत, भविष्य, वर्तमान) के ज्ञान का संकेत हैं। उनके नेत्र करुणा और शक्ति से पूर्ण होते हैं।

3. हाथ और आयुध:-

माता के चार भुजाएं होती हैं:एक हाथ में पाश (बंधन और मोह का प्रतीक)एक हाथ में अंकुश (वासनाओं को वश में करने का साधन)एक हाथ वरमुद्रा (आशीर्वाद)एक हाथ अभयमुद्रा (भय निवारण)

4. वस्त्र और आभूषण:-

वे लाल या सिंदूरी वस्त्र धारण करती हैं, जो सृजन और उर्जा का प्रतीक हैं।वे रत्नों से जड़े आभूषण, मुकुट और हार धारण करती हैं।उनका कंठ माणिक और मोतियों से विभूषित होता है।

5. आसन (सिंहासन):-

माता कमल के आसन पर या सिंह पर विराजमान होती हैं।श्रीविद्या परंपरा में वे सहस्रदल कमल के मध्य स्थित सिंहासन पर भगवान शिव के साथ विराजती हैं।

6. भाव मुद्रा:-

उनका स्वरूप ममत्व और करुणा से परिपूर्ण है, किंतु जब समय हो, तो वे गंभीर, दृढ़ और निर्णायक भी बन जाती है।

मां भुवनेश्वरी और माता पार्वती:-

माता भुवनेश्वरी और माता पार्वती, दोनों ही आदिशक्ति के स्वरूप हैं, लेकिन उनके स्वरूप, कार्य और उपासना की विधियाँ भिन्न हैं। इन दोनों देवियों को समझना हमें शक्ति के विभिन्न आयामों को जानने का अवसर देता है।

माता पार्वती भी आदिशक्ति का अवतार हैं, और उन्होंने अनेक रूप लिए – जैसे दुर्गा, काली, चंडी, अन्नपूर्णा।वहीं, माता भुवनेश्वरी शक्ति के तांत्रिक और ब्रह्मांडीय आयाम को दर्शाती हैं।

कुछ परंपराओं में, भुवनेश्वरी को ही पार्वती का एक उच्च तांत्रिक रूप भी माना गया है, जो केवल गंभीर साधकों को सुलभ होता है।

प्रतीकात्मक अंतर:

पार्वती – मानवता के लिए सुलभ, प्रेरणा देने वाली, संसार में जीने की कला सिखाने वाली देवी

भुवनेश्वरी – ब्रह्मांड के रहस्यों की स्वामिनी, साधकों को आत्मबोध और मुक्तिपथ प्रदान करने वाली देवी

माता पार्वती और माता भुवनेश्वरी दोनों एक ही शक्ति के विभिन्न रूप हैं।पार्वती हैं भक्ति और प्रेम की शक्ति, जबकि भुवनेश्वरी हैं चेतना, ब्रह्मज्ञान और माया की शक्ति।

माता भुवनेश्वरी के 10 प्रमुख मंदिर (स्थान व विशेषता सहित) Bhuvneshwari mata temple –

🔱 1. भुवनेश्वरी मंदिर – गुवाहाटी (असम)

स्थान: कामाख्या पहाड़ी, गुवाहाटी

विशेषता:यह मंदिर माँ कामाख्या मंदिर परिसर में ही स्थित है। माता भुवनेश्वरी यहां एक रहस्यमयी गुफा में विराजमान हैं। साधक यहाँ तांत्रिक साधना करते हैं।

🔱 2. भुवनेश्वरी शक्तिपीठ – नैनीताल (उत्तराखंड)

स्थान: भवाली के पास

विशेषता:हिमालय की गोद में स्थित यह मंदिर शांत वातावरण में शक्ति उपासना का केंद्र है। यहाँ माँ की प्रतिमा सौम्य और ध्यानमग्न मुद्रा में है।

🔱 3. श्री भुवनेश्वरी मंदिर – ओडिशा (संबलपुर)

स्थान: पश्चिम ओडिशा

विशेषता:यहाँ देवी की प्रतिमा अत्यंत प्राचीन और पत्थर से बनी हुई है। नवरात्रि और शक्ति उत्सव पर विशेष पूजा होती है।

🔱 4. भुवनेश्वरी मंदिर – कोल्हापुर (महाराष्ट्र)

स्थान: महालक्ष्मी मंदिर परिसर के पास

विशेषता:यहाँ माँ भुवनेश्वरी को महालक्ष्मी का तांत्रिक रूप मानकर पूजा की जाती है। विशेषकर तांत्रिक पूजा विधि में यह स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण है।

🔱 5. भुवनेश्वरी मंदिर – पुरी (ओडिशा)

स्थान: जगन्नाथ मंदिर परिसर

विशेषता:यह मंदिर माँ भुवनेश्वरी के सात रूपों में एक है। यहाँ देवी को भगवान जगन्नाथ की अधिष्ठात्री शक्ति माना जाता है।

🔱 6. श्री भुवनेश्वरी शक्तिपीठ – तमिलनाडु (कांचीपुरम)

स्थान: कांचीपुरम शक्तिपीठ

विशेषता:यहाँ देवी की पूजा संस्कृत मंत्रों और तांत्रिक विधियों से की जाती है। यह स्थान दक्षिण भारत के सबसे महत्वपूर्ण शक्तिपीठों में एक है।

🔱 7. भुवनेश्वरी देवी मंदिर – त्रिपुरा (उदयपुर)

स्थान: त्रिपुरा का पुराना राजधानी क्षेत्र

विशेषता:त्रिपुरासुंदरी मंदिर के समीप स्थित यह स्थान देवी के उपासकों के लिए सिद्धिप्रद माना गया है।

🔱 8. भुवनेश्वरी मंदिर – उदयपुर (राजस्थान)

स्थान: झीलों के नगर में स्थित

विशेषता:यहाँ देवी की मूर्ति विशेष रूप से सिंदूरी रंग में सुशोभित है। हर पूर्णिमा को यहाँ विशेष भजन संध्या होती है।

🔱 9. भुवनेश्वरी मंदिर – काशी (वाराणसी, उत्तरप्रदेश)

स्थान: विश्वनाथ मंदिर क्षेत्र

विशेषता:यहाँ देवी की पूजा तांत्रिक और वैदिक दोनों रूपों में होती है। साधक यहाँ ध्यान, जप और होम करते हैं।

🔱 10. भुवनेश्वरी मंदिर – पश्चिम बंगाल (शांतिकुंज)

स्थान: शांतिनिकेतन क्षेत्र

विशेषता:यह मंदिर ब्रह्मांडीय शक्ति की उपासना का प्रमुख केंद्र है, जहाँ भुवनेश्वरी को ब्रह्म की अधिष्ठात्री शक्ति माना जाता है।

माता भुवनेश्वरी की साधना विधि Bhuvneshwari mata sadhna:-

1.प्रातःकाल स्नान करके शुद्ध और शांत स्थान पर आसन लगाकर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठें।

2.पूजा स्थल पर माता भुवनेश्वरी की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें और उसे लाल वस्त्र से सजाएँ।

3.माता को लाल फूल, धूप, दीप, कुमकुम, अक्षत और नैवेद्य अर्पित करें।

4.भुवनेश्वरी देवी का बीज मंत्र है – “ॐ ह्रीं भुवनेश्वर्यै नमः“, जिसका 108 बार जाप करें।

5.जाप के लिए रुद्राक्ष या स्फटिक माला का प्रयोग करें।

6.साधना के समय माता का ध्यान उनके चंद्रमुखी, सौम्य और तेजस्वी स्वरूप में करें।

7.त्रिकोण यंत्र (श्रीचक्र) की पूजा भी इस साधना का एक महत्वपूर्ण भाग है।

8.पूर्णिमा, नवरात्रि या शुक्रवार के दिन साधना विशेष फलदायी मानी जाती है।

9.साधना के बाद आरती करें और माता से अपने जीवन में सुख, समृद्धि और शांति का आशीर्वाद माँगें।

10.नित्य साधना से आत्मबल, आकर्षण शक्ति, आध्यात्मिक उन्नति और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।

माता भुवनेश्वरी की तांत्रिक विद्या Bhuvneshwari mata mantra:-

माता भुवनेश्वरी की तांत्रिक विद्या अत्यंत गूढ़, रहस्यमय और शक्तिशाली है। वे दश महाविद्याओं में चतुर्थ स्थान पर विराजमान हैं और तांत्रिक साधना में उन्हें “त्रैलोक्यमोहिनी” अर्थात तीनों लोकों को मोहित करने वाली देवी कहा गया है। उनकी तांत्रिक उपासना साधक को माया, समय और चेतना पर अधिकार दिला सकती है।

1.तांत्रिक स्वरूप और रहस्य:

माता भुवनेश्वरी आकाशतत्त्व की अधिष्ठात्री देवी हैं। उनका स्वरूप समय, दिशा और माया से जुड़ा हुआ है। वे त्रिपुरसुंदरी की पूर्वज और श्रीविद्या साधना का आधार मानी जाती हैं।

2. साधना के लाभ:

वाणी सिद्धि – वाक्शक्ति पर अधिकार

त्रिकालदर्शिता – भूत, भविष्य, वर्तमान का ज्ञान

माया पर विजय – संसारिक भ्रम और बंधनों से मुक्ति

राजसत्ता और प्रभाव – आकर्षण, वशीकरण और सम्मान प्राप्ति

आध्यात्मिक उत्थान – ब्रह्मज्ञान, ध्यान में स्थिरता, आत्मसाक्षात्कार

3. उच्च साधनाएं:

a) श्रीचक्र साधना:

माता भुवनेश्वरी श्रीचक्र के मध्य भाग की अधिष्ठात्री हैं।यह साधना अत्यंत गोपनीय होती है और केवल योग्य गुरु की आज्ञा से की जाती है।

b) कुंडलिनी जागरण:

भुवनेश्वरी की साधना सहस्त्रार चक्र को सक्रिय करती है और ध्यान को ब्रह्मांडीय चेतना से जोड़ती है।

4. सावधानियां:

बिना गुरु के मार्गदर्शन के इस साधना में प्रवेश नहीं करना चाहिए।

मंत्रों का उच्चारण सही हो, अन्यथा उल्टा प्रभाव पड़ सकता है।भुवनेश्वरी की साधना में मन, वचन और कर्म की शुद्धता अनिवार्य है।

माता भुवनेश्वरी की तांत्रिक विद्या केवल चमत्कार नहीं, बल्कि आध्यात्मिक जागरण और आत्मज्ञान की सीढ़ी है।यह विद्या संसार को मोहित करने से लेकर आत्मा को ब्रह्म में विलीन करने तक की क्षमता रखती है।

निष्कर्ष :-

माता भुवनेश्वरी के जीवन से कई महत्वपूर्ण शिक्षाएं मिलती हैं। वे विश्व की रचयिता, पालनकर्ता और संहारक हैं, जो सभी को प्रेम, दया और ज्ञान प्रदान करती हैं। माता भुवनेश्वरी की जीवन से हमें जो मुख्य शिक्षा मिलती है। हमें हमेशा सत्य और न्याय के मार्ग पर चलना चाहिए। हमें कभी भी अन्याय और अत्याचार का समर्थन नहीं करना चाहिए। हमें हमेशा अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए और समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी को निभाना चाहिए।

🔚 यदि श्रद्धा और विश्वास के साथ माता भुवनेश्वरी की आराधना की जाए, तो वे साधक को न केवल आध्यात्मिक शक्ति, बल्कि जीवन में संतुलन, सौंदर्य और समृद्धि भी प्रदान करती हैं।

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