
प्रस्तावना:-
माता भैरवी दस महाविद्याओं में एक प्रमुख और शक्तिशाली देवी हैं, जिन्हें तंत्र साधना की अधिष्ठात्री देवी माना जाता है। उनका स्वरूप उग्र, तेजस्वी और भयंकर होता है, परंतु वे अपने भक्तों पर अत्यंत कृपालु हैं। भैरवी का अर्थ होता है “भयरूपिणी” या “भय को हरने वाली देवी”। वे समय (काल) की स्वामिनी हैं और समस्त सांसारिक बाधाओं का विनाश करती हैं। उनकी साधना आत्मशक्ति, जाग्रति और मुक्ति की ओर ले जाती है।
देवी भैरवी को त्रिनेत्री, रक्तवर्णा, रौद्र मुद्रा और मुण्डमाला धारण करने वाली देवी के रूप में वर्णित किया गया है। उन्हें शक्ति का चरम रूप कहा गया है, जो रचना और संहार दोनों में समर्थ हैं। माता भैरवी की पूजा विशेष रूप से तांत्रिक साधकों द्वारा की जाती है। नवरात्रि और रात्रिकालीन पूजा में इनका विशेष महत्व होता है।
माता भैरवी Mata Bhairavi कैसे प्रकट हुई:-
माता भैरवी की उत्पत्ति के बारे में विभिन्न पौराणिक कथाएं हैं।
देवी पार्वती का अवतार:
एक मान्यता के अनुसार, भैरवी, देवी पार्वती का ही अवतार हैं. जब भगवान शिव ने भैरव को प्रकट किया, तो उन्होंने माता पार्वती से भी एक ऐसी शक्ति उत्पन्न करने को कहा जो भैरव की पत्नी बन सके। तब माता पार्वती ने भैरवी को प्रकट किया.
महाकाली का छाया रूप:
कुछ कथाओं में, भैरवी को महाकाली के छाया रूप से प्रकट हुआ बताया गया है. जब महाकाली ने अपना गौर वर्ण प्राप्त करने के लिए अंतर्धान होने का विचार किया, तो महाकाल ने उन्हें खोजा और नारद के माध्यम से उनसे विवाह का प्रस्ताव रखा, जिससे क्रोधित होकर भैरवी प्रकट हुई।
देवी पार्वती का उग्र रूप:
कुछ कथाएं, देवी पार्वती ने जब अपने पति शिव के ध्यान को भंग करने का प्रयास किया और असफल रहीं, तो उन्होंने अपनी उग्रता का प्रदर्शन किया और भैरवी के रूप में प्रकट हुई.
तंत्र शास्त्र:
तंत्र ग्रंथों के अनुसार, भैरवी का प्रकट होना संसार के तीनों लोकों में हो रहे अधर्म और अराजकता को समाप्त करने के लिए हुआ था।
एक अन्य कथा के अनुसार जब सती देवी ने अपने पिता दक्ष के यज्ञ में अपने पति भगवान शिव का अपमान होते देखा, तो उन्होंने क्रोध और दुःख से स्वयं को अग्नि में भस्म कर दिया। सती के शरीर को लेकर भगवान शिव अत्यंत क्रोधित और व्याकुल होकर तांडव करने लगे। उनका यह रौद्र रूप ब्रह्मांड के लिए संकट बन गया।
तब भगवान विष्णु ने सती के शरीर को अपने सुदर्शन चक्र से खंड-खंड कर पृथ्वी पर गिराया, जिससे शक्ति पीठों की स्थापना हुई। इसी क्रम में, शिव के उग्र रूप को शांत करने और संतुलन बनाए रखने के लिए आदि शक्ति ने दस महाविद्याओं के रूप में स्वयं को विभाजित किया। माता भैरवी उन्हीं दस महाविद्याओं में से एक रूप में प्रकट हुईं। वे उग्र, रौद्र, और संहारक शक्ति का प्रतिनिधित्व करती हैं। उनका यह रूप अहंकार, अज्ञान और पापों का नाश करने वाला है।
माता भैरवी के अन्य नाम:-
माता भैरवी के कई अन्य नाम हैं, जो उनके स्वरूप, गुणों और शक्तियों का वर्णन करते हैं। ये नाम विभिन्न ग्रंथों, तंत्रों और भक्ति परंपराओं में मिलते हैं। नीचे माता भैरवी के प्रमुख अन्य नाम दिए जा रहे हैं:
1.त्रिपुर भैरवी – तीनों लोकों में व्याप्त उग्र शक्ति।
2.कपालिनी – मुण्डमाल और खप्पर धारण करने वाली।
3.छिन्नमस्ता – स्वयं का मस्तक काटने वाली महाशक्ति (कभी-कभी भैरवी का एक तांत्रिक स्वरूप मानी जाती हैं)।
4.रुद्राणी – रुद्र (शिव) की शक्ति और पत्नी।
5.श्री भैरवी – सौंदर्य और शक्ति से युक्त रूप।
6.दक्षिणा भैरवी – दक्षिण दिशा की अधिष्ठात्री देवी।
7.रक्तदन्तिका – जिनके दांत रक्तवर्ण के हैं।
8.क्रोधेश्वरी – क्रोध की अधिष्ठात्री शक्ति।
9.त्रिनेत्रा – जिनकी तीन आँखें हैं।
10.वज्रवाहिनी – वज्र जैसी अडिग और कठोर शक्ति वाली।
11.योगिनी – योग में पारंगत और तांत्रिक मार्ग की अधीश्वरी।
12.महाभैरवी – सभी भैरवी स्वरूपों की अधिपति।
13.भूतनाथेश्वरी – भूत, प्रेत और अदृश्य शक्तियों की नियंत्रक।
माता भैरवी का विवाह;-
माता भैरवी का विवाह किसी एक विशिष्ट देवता से नहीं बताया गया है, लेकिन तांत्रिक और शैव परंपरा में उन्हें भगवान भैरव (या महाकाल शिव) की शक्ति स्वरूपा और अर्धांगिनी माना जाता है। आइए विस्तार से समझते हैं:
भैरवी का विवाह पारंपरिक रूप से वर्णित नहीं है जैसे पार्वती-शिव या विष्णु-लक्ष्मी का होता है। परंतु तांत्रिक परंपरा में यह माना जाता है कि जब शिव भैरव रूप में प्रकट होते हैं, तब आदि शक्ति भैरवी रूप में उनके साथ युगल हो जाती हैं। यह युगल रूप, चेतना और शक्ति का मिलन है, जिसे तांत्रिक साधना में महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है।
इन दोनों का विवाह का अर्थ है, चेतना और शक्ति का मिलन, जिससे सृष्टि का संचालन होता है। यह शारीरिक विवाह नहीं बल्कि आध्यात्मिक एकता का प्रतीक है।
माता देवी का निवास:-
1.मणिपुर चक्र में वास (मानव शरीर में):
योग और तंत्र शास्त्र के अनुसार, माता भैरवी का निवास मणिपुर चक्र (नाभि स्थान) में माना जाता है। यह स्थान शक्ति, अग्नि और इच्छा शक्ति का केंद्र है।
2.श्मशान (भैरवी का प्रिय स्थान):
माता भैरवी को श्मशानवासिनी भी कहा जाता है। उनका निवास उन स्थानों पर माना जाता है जहां मोह-माया का त्याग होता है – जैसे श्मशान, जहाँ जीवन और मृत्यु का रहस्य स्पष्ट होता है।
3.सूक्ष्म रूप से:
माता भैरवी साधक के मन, चित्त और चेतना में वास करती हैं, जब साधक पूर्ण भक्ति और तांत्रिक अनुशासन से उन्हें आमंत्रित करता है। वे वहीं प्रकट होती हैं जहाँ भय, अज्ञान और अहंकार का नाश होता है।
माता देवी की तांत्रिक विद्या:-
माता भैरवी की तांत्रिक विद्या अत्यंत गूढ़, रहस्यमय और शक्तिशाली मानी जाती है। वे दस महाविद्याओं में से एक हैं और तांत्रिक साधना की उग्र और तेजस्वी शक्ति हैं। उनकी तांत्रिक विद्या साधक को आत्मज्ञान, भय का नाश, काम-विकार पर विजय और सिद्धियाँ प्रदान करने में समर्थ होती है।
1. तांत्रिक स्वरूप:
माता भैरवी को “संहारिणी शक्ति” कहा जाता है — जो अज्ञान, पाप, मोह और माया का नाश करती हैं। वे श्मशानवासिनी हैं — श्मशान साधना में उनकी विशेष उपस्थिति मानी जाती है।उनका स्वरूप उग्र होता है, परंतु वे अपने भक्तों के लिए करुणामयी और रक्षिका होती हैं।
2. भैरवी साधना के उद्देश्य:
भय, शत्रु, रोग और तंत्र बाधाओं से मुक्ति। आत्मबल, तेज, ओज और आत्मज्ञान की प्राप्ति। तांत्रिक सिद्धियाँ (साधनाओं में सफलता)। काम, क्रोध, मोह जैसे विकारों पर विजय।
3. माता भैरवी के प्रमुख तांत्रिक मंत्र Mata bhairavi mantra:-
मूल मंत्र (बीज मंत्र):
ॐ भैरव्यै नमः
(साधना प्रारंभ के लिए)
गुप्त तांत्रिक मंत्र:
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै भैरव्यै नमः
यह मंत्र अत्यंत शक्तिशाली माना जाता है और विशेषत: मध्यरात्रि, अमावस्या या नवमी तिथि को जप करने से सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं।
4. भैरवी साधना की विधि Mata Bhairavi sadhna:
स्थान: एकांत, श्मशान, पीपल वृक्ष के नीचे या शक्ति पीठकाल: रात्रि विशेषकर अमावस्या, नवमी, या नवरात्रि की रात्रियाँआसन: काले रंग का आसन, उत्तर या पूर्व दिशा की ओर मुखसामग्री: लाल फूल, काले तिल, भस्म, खप्पर या लौंगमंत्र जप: न्यूनतम 108 बार (या 1,000+ जप अर्धरात्रि में)
सावधानी: यह साधना पूर्ण अनुशासन, गुरु मार्गदर्शन और मानसिक स्थिरता के बिना न की जाए — क्योंकि यह उग्र तांत्रिक विद्या है।5. सिद्धियाँ और परिणाम:तांत्रिक शक्ति, वाक् सिद्धि, शत्रु पर नियंत्रण,दुष्ट आत्माओं, तंत्र-बाधा से रक्षा, अंतरात्मा की शुद्धि और आत्मजागरण
माता भैरवी के रूपका वर्णन:-
माता देवी के विभिन्न रूप होते हैं, क्योंकि वे प्रकृति की संपूर्ण शक्ति और मातृत्व का प्रतीक हैं। यहां पर मैं माता भैरवी के रूप का विशेष वर्णन दे रहा हूँ, जो उनकी उग्र और दिव्य शक्ति का परिचायक है।
1. रूप और रंग:
माता भैरवी का रंग गहरा लाल या रक्तवर्ण होता है, जो उनकी उग्रता और ऊर्जा का प्रतीक है। वे कभी-कभी काले या गहरे नीले रंग में भी प्रकट होती हैं, जो अज्ञान और पाप के विनाश का सूचक है।
2. नेत्र:
माता भैरवी के तीन नेत्र होते हैं — दो सामान्य नेत्र और तीसरा तृतीय नेत्र, जो अंतर्ज्ञान, त्रिपुरा विनाश और समय के पार देखने की शक्ति दर्शाता है।
3. वस्त्र और आभूषण:
वे खप्पर और मुण्डमाल (खोपड़ी की माला) पहनती हैं, जो माया, अहंकार और मृत्युलाई विनाश करने का प्रतीक है। उनका गला मुण्डमाला से सज्जित होता है, जो सांसारिक बंधनों से मुक्त होने का संकेत है।
4. हाथ और अस्त्र-शस्त्र:
माता भैरवी के हाथों में अक्सर त्रिशूल, खड्ग (तलवार), डमरु और कपाला (खप्पर) होते हैं। उनके एक हाथ से वे आशीर्वाद देती हैं और दूसरे से संहार का चिन्ह दिखाती हैं।
5. मुद्रा और आसन:
वे उग्र मुद्रा में बैठी होती हैं, जिसका अर्थ है भय, अज्ञान और पाप का संहार। उनका वाहन गधा (गदर्भ) होता है, जो विनम्रता और शक्ति का प्रतीक है।
6. आसपास का दृश्य:
माता भैरवी के चारों ओर भस्म (राख) और आग की लपटें होती हैं। वे श्मशान में प्रकट होती हैं, जहां मृत्यु और जीवन के रहस्य प्रकट होते हैं।
माता भैरवी का रूप भयावह, उग्र, शक्तिशाली और रहस्यमय है। वे संहारिणी देवी हैं जो नकारात्मक शक्तियों का नाश करती हैं और अपने भक्तों को मोक्ष, शक्ति और ज्ञान प्रदान करती हैं।

माता भैरवी और माता पार्वती:-
पार्वती और भैरवी दोनों ही महाशक्ति के रूप हैं। पार्वती अधिक सौम्य और पालनहार हैं, जबकि भैरवी उग्र और संहारक।दोनों ही भगवान शिव की शक्ति स्वरूपा हैं। पार्वती शिव की शांति और संतुलन देने वाली शक्ति हैं, जबकि भैरवी शिव के उग्र, तांडवकारी रूप भैरव की शक्ति।
पार्वती मनुष्य के जीवन में प्रेम, परिवार और तपस्या का महत्व दर्शाती हैं, जबकि भैरवी भय, अज्ञान और बंधनों को तोड़कर साधक को मुक्ति की ओर ले जाती हैं।
माता पार्वती जीवन की सौम्यता, प्रेम और सृजन की देवी हैं, जबकि माता भैरवी शक्ति, संहार और तांत्रिक ज्ञान की देवी। दोनों ही देवी शिव की शक्ति के रूप में पूजनीय हैं, लेकिन उनकी भूमिका और स्वरूप अलग-अलग हैं।

माता भैरवी के 10 प्रमुख मंदिरों के नाम, उनके स्थल और विशेषताएं, जो तांत्रिक साधना, उग्र शक्ति और भक्तिमय आराधना के लिए प्रसिद्ध हैं Bhairavi mata temple:-
1. भैरवी शक्तिपीठ – त्रिपुरा (त्रिपुरा)
विशेषता: यह मंदिर त्रिपुरा की राजधानी अगरतला के पास स्थित है और 51 शक्तिपीठों में से एक है। यहां देवी सती का दायां पैर गिरा था। यह स्थान तांत्रिकों के लिए विशेष साधना स्थल माना जाता है।
2. भैरवी देवी मंदिर – भुवनेश्वर (ओडिशा)
विशेषता: यह मंदिर लिंगराज मंदिर परिसर के पास स्थित है। यहां माता उग्र रूप में विराजती हैं और तंत्र-साधना के लिए यह स्थान विशेष रूप से शक्तिशाली माना जाता है।
3. भीमेश्वरी भैरवी मंदिर – तिरुवन्नामलई (तमिलनाडु)
विशेषता: अरुणाचल पर्वत के पास स्थित यह मंदिर देवी की उग्र और शांत दोनों मूर्तियों को समर्पित है। यह स्थल तांत्रिक योगियों का केंद्र माना जाता है।
4. काली-भैरवी मंदिर – वाराणसी (उत्तर प्रदेश)
विशेषता: काशी नगरी में स्थित यह मंदिर शक्ति और भैरव दोनों की उपासना का एक दिव्य संगम है। यहाँ काल भैरव मंदिर के पास भैरवी का गुप्त मंदिर है।
5. भैरवी देवी मंदिर – कटरा (जम्मू-कश्मीर)
विशेषता: वैष्णो देवी यात्रा के दौरान कटरा के आसपास यह एक रहस्यमयी मंदिर है, जहां भक्त माता की विशेष कृपा प्राप्त करते हैं। यह स्थान मनोकामना पूर्ति के लिए प्रसिद्ध है।
6. भैरवी माता मंदिर – अमरकंटक (मध्यप्रदेश)
विशेषता: नर्मदा उद्गम स्थल पर स्थित यह मंदिर शक्ति साधना के लिए जाना जाता है। यहां तांत्रिक अनुष्ठान विशेष अवसरों पर आयोजित होते हैं।
7. उग्र भैरवी मंदिर – गुवाहाटी (असम)
विशेषता: यह मंदिर कामाख्या मंदिर के समीप स्थित है और शक्ति तांत्रिक साधना का अत्यंत शक्तिशाली केंद्र माना जाता है। यहां विशेषकर गुप्त नवरात्रि पर साधक एकत्र होते हैं।
8. भैरवी माता मंदिर – झांसी (उत्तर प्रदेश)
विशेषता: यह मंदिर वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई के काल का माना जाता है। यहां माता को शस्त्रों से सजाया जाता है और युद्ध की देवी रूप में पूजा जाता है।
9. भैरवी देवी मंदिर – रांची (झारखंड)
विशेषता: यह शक्तिपीठ छोटानागपुर क्षेत्र में स्थित है, जहां आदिवासी भक्त माता को अपने कुलदेवी के रूप में पूजते हैं। यहाँ माता की पूजा में बलिदान की भी परंपरा रही है।
10. भैरवी माता मंदिर – उदयपुर (राजस्थान)
विशेषता: यह मंदिर अरावली की पहाड़ियों में स्थित है। यहां हर नवरात्रि में विशेष तांत्रिक अनुष्ठान होते हैं। माता का रूप अत्यंत उग्र और चमत्कारी माना जाता है।
माता भैरवी की साधना विधि :-
1.साधक को प्रातः या रात्रि के शांत समय में स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण करने चाहिए।
2.पूजा स्थान को साफ कर माता भैरवी की मूर्ति या चित्र लाल वस्त्र पर स्थापित करें।
3.देवी को लाल फूल, रक्त चंदन, सिंदूर, कुमकुम, दीप और नैवेद्य अर्पित करें।
4.साधना के लिए “ॐ भैरव्यै नमः” या “ह्रीं भैरव्यै नमः” बीज मंत्र का 108 बार जाप करें।
5.माला के रूप में रुद्राक्ष या लाल चंदन की माला का प्रयोग करना शुभ माना जाता है।
6.ध्यान करते समय देवी के उग्र और रक्षक स्वरूप की कल्पना करें – रक्तवर्णा, त्रिनेत्री और मुण्डमालाधारी।
7.साधना के दौरान तामसिक भोजन, असत्य और विक्षिप्तता से दूर रहें।
8.साधना पूर्ण रूप से एकांत, निष्ठा और श्रद्धा से की जानी चाहिए।
9.शुक्रवार, अमावस्या या नवरात्रि की रातों में विशेष फलदायक साधना होती है।
10.साधना पूर्ण होने पर देवी की आरती करें और शांति, शक्ति, और सुरक्षा का आशीर्वाद माँगें।
निष्कर्ष:-
माता भैरवी के जीवन से हमें दृढ़ निश्चय, शक्ति, और आध्यात्मिक मार्ग पर चलने की प्रेरणा मिलती है। वे शक्ति का प्रतीक हैं, जो बाधाओं को दूर करती हैं और भक्तों को सही दिशा में मार्गदर्शन करती हैं।