
प्रस्तावना :-
रंभा अप्सरा-भारतीय पुराणों और धर्मग्रंथों में वर्णित अप्सराएँ केवल सौंदर्य की मूर्ति नहीं, बल्कि कला और संस्कृति की भी प्रतीक रही हैं। ऐसी दिव्य अप्सराओं में रंभा का नाम भी सर्वोपरि माना जाता है। रंभा न केवल स्वर्ग की प्रमुख नर्तकी थीं, बल्कि उनकी उपस्थिति से समस्त लोकों में सौंदर्य, संगीत और नृत्य की सजीव लहर दौड़ जाती थी। उनका जन्म समुद्र मंथन जैसी दिव्य घटना से जुड़ा है, जो स्वयं में ब्रह्मांडीय संतुलन का प्रतीक है।
रंभा अप्सरा हमें सुंदरता के साथ-साथ मर्यादा, आत्मसम्मान और नारी गरिमा के साथ रहना सिखाती है। रंभा देवताओं के लिए एक शक्तिशाली अस्त्र थीं। लेकिन जब उनके आत्मसम्मान पर आघात हुआ, तब उन्होंने अपनी पीड़ा को मौन नहीं रखा, बल्कि न्याय के लिए पुकार लगाई। रंभा की कथा केवल एक अप्सरा की कथा नहीं, बल्कि वह धर्म-अधर्म के संघर्ष में स्त्री की भूमिका, शक्ति और सम्मान की अमर गाथा है।
रंभा Rambha का जन्म कैसे हुआ:-
एक पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन समय में जब देवताओंऔर असुरों के बीच निरंतर युद्ध होते रहते थे। तब देवताओं ने अपनी शक्ति बढ़ाने के लिए समुद्र मंथन करने का निर्णय लिया। समुद्र मंथन से अनेक दिव्य वस्तुएँ और शक्तियाँ उत्पन्न हुईं । इस दौरान अनेक अप्सराय भी मंथन के दौरान उत्पन्न हुई। इन्हीं अप्सराओं में से एक थीं रंभा अप्सरा जो अत्यंत सुंदर, नृत्य-कला में निपुण और स्वर्ग की प्रमुख नृत्यांगना बनीं।
कुछ पौराणिक कथाओं में कहा गया है कि प्रजापति कश्यप और उनकी पत्नी से रंभा का जन्म हुआ था । वहीं कुछ कथाओं में उन्हें ब्रह्मा की मनोमाया कहा गया है, जिन्हें स्वर्ग की शोभा बढ़ाने के लिए रचा गया।
रंभा का विवाह:-
पुराणों और ग्रंथों में रंभा के विवाह की अलग-अलग कथाएँ मिलती हैं। कुछ प्रमुख कथाएं इस प्रकार हैं:
1. रंभा और नलकूबर का संबंध:
नलकूबर, कुबेर के पुत्र है जो कि धन के देवता कहे जाते है।ग्रंथों और लोककथाओं में यह उल्लेख मिलता है कि रंभा अप्सरा और नलकूबर का प्रेमी या पति-पत्नी के जैसा संबंध था। रंभा अप्सरा इतनी सुंदर और कला में इतनी निपुण थी की नलकुबेर उनसे अत्यंत प्रभावित थे और वे रंभा को अपनी पत्नी या प्रियतमा के रूप में स्वीकार करते थे।
ऐसा माना जाता है कि जब रावण या मेघनाद ने रंभा पर बल का प्रयोग किया, तो नलकूबर ने उन्हें श्राप दिया था ।
रंभा और नलकुबेर की प्रेम कहानी:-
भारतीय पौराणिक कथाओं में रंभा अप्सरा और नलकूबर की प्रेमगाथा एक सुंदर, भावुक और त्रासद प्रेम कथा है, जो स्वर्ग की अप्सरा और धन के देवता के पुत्र के बीच के पवित्र प्रेम को दर्शाती है। यह कथा केवल सौंदर्य और आकर्षण की नहीं, बल्कि नारी सम्मान, आत्मसम्मान और न्याय की भी है।
एक दिन नल कुबेर स्वर्ग लोक के संगीत सभा में उपस्थित हुए थे। वहां उन्होंने रंभा को नृत्य करते हुए देखा। नल कुबेर रंभा का नृत्य उसकी आंखें ,उसकी सुंदरता व उसकी लय देखकर रंभा की ओर आकर्षित हो गए। रंभा ने भी नल कुबेर को जैसे ही देखा वैसे वह नल कुबेर के तेज, शालीनता और भावुकता से प्रभावित हो गई। धीरे-धीरे उनके मध्य संगीत, कला और संवाद के माध्यम से गहरा प्रेम बढने लगा।
ऐसा कहा जाता है कि रंभा और नलकूबर का प्रेम शारीरिक आकर्षण से परे, एक आत्मिक जुड़ाव था। वह दोनों अक्सर स्वर्ग के उपवनों, पुष्करिणियों और नंदन कानन में मिलते, संवाद करते, और संगीत-नृत्य के माध्यम से अपनी भावनाएं व्यक्त करते।
नलकूबर ने रंभा को पत्नी तुल्य आदर और प्रेम दिया।ऐसा माना जाता है कि उनका विवाह होना कोई साधारण बात नहीं थी क्योंकि स्वर्ग की अप्सराय केवल देवताओं के कार्यों के लिए नियुक्त होती थी लेकिन नलकुबेर ने रंभा को सामाजिक नियमों के परे जाकर रंभा को हृदय से पत्नी माना था।
एक बार रंभा, नलकूबर से मिलने वन की ओर जा रही थीं।उसी समय रावण (जो कि नलकूबर के पिता कुबेर का सौतेला भाई था) वहां से गुजर रहा था। उसने रंभा को देखा और उसकी सुंदरता से मोहग्रस्त हो गया।
रंभा ने कहा “मैं तुम्हारे भतीजे नलकूबर की पत्नी तुल्य हूँ, मुझे मत छुओ।”
लेकिन रावण ने उसकी बातें नहीं मानी और उस पर बलात्कार किया।
जब रंभा रोती नलकूबर के पास पहुँची तो नलकुबेर को अत्यंत क्रोधित हो गए। और रावण को श्राप दे दिया-
“जिस दिन तू किसी स्त्री को उसकी इच्छा के विरुद्ध छुएगा, उसी दिन तू अग्नि में जलकर भस्म हो जाएगा।
यही श्राप रावण के अंत का कारण बना, क्योंकि इसी कारण वह माता सीता को छू नहीं सका और माता सीता को उसने अशोक वाटिका में रखा।
रंभा और नलकूबर की यह प्रेम कथा हमें सिखाती है कि सच्चा प्रेम शब्दों और शरीर से ऊपर, आत्मा का बंधन होता है।नारी सम्मान की रक्षा में खड़े होने वाला प्रेमी ही सच्चा पुरुष होता है। अन्याय के विरुद्ध न्याय की आवाज उठाना प्रेम की सबसे बड़ी अभिव्यक्ति है।
कई शास्त्रीय ग्रंथो जैसे रामायण महाभारत पुराण आदि में माना जाता है कि रंभा का विधिवत विवाह किसी से भी नहीं हुआ ।
पुराणों में कहां गया है कि द्वापर युग में रम्भा का विवाह ऋषि शेशिरायण से भी हुआ था, जिससे उन्हें एक पुत्र हुआ था। जिसका नाम कालयवन था जो बहुत ही शक्तिशाली था ,रम्भा ने पुत्र के जन्म के बाद स्वर्गलोक वापस लौट गई थी।

रंभा Rambha apsara और अंधकासुर :-
माना जाता है कि अंधकासूर शिवजी का भक्त एक असुर था, जिसने कठोर तपस्या के बल पर यह वरदान प्राप्त किया था कि वह तब तक नहीं मरेगा जब तक वह किसी अपनी माँ समान स्त्री को न छुए।
रंभा – स्वर्ग की परम अप्सरा, संगीत, नृत्य और सौंदर्य की जीवंत मूर्ति। देवताओं ने रंभा को अंधकासुर की वासना और अहंकार को तोड़ने के लिए भेजा।
रंभा अप्सरा ने अंधकासुर के दरबार में जाकर अंधकासुर को अपने नृत्य संगीत और सौंदर्य से अंधकासुर को प्रभावित किया। अंधकासुर उसके नृत्य से प्रभावित हो गया और उसने रंभा को अपनी रानी बनाने की इच्छा जताई।
लेकिन रंभा अप्सरा ने उसे मना कर दिया इस पर अंधकासुर ने कहा कि मैं तुम्हें बलपूर्वक अपनी रानी बनाऊंगा। इस पर रंभा ने कहा कि तुम मुझे बलपूर्वक नहीं छू सकते क्योंकि मैं तुम्हारी मां समान हूं जैसे ही तुमने मुझे छुआ तुम जलकर बस में हो जाओगे।इस तरह रंभा के बुद्धि, नारी-गरिमा और दिव्य चेतना से अंधकासुर का अहंकार डगमगाने लगता है।
रंभा अप्सरा और मेघनाथ:-
जब मेघनाथ (इंद्रजीत) शिव जी को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या कर रहा था, तब इंद्र को भय हुआ कि यदि वह राक्षस इतनी शक्ति प्राप्त कर लेगा तो स्वर्गलोक के लिए संकट बन जाएगा। तब इंद्र ने रंभा को मेघनाथ की तपस्या भंग करने के लिए भेजा। । रंभा ने इंद्र के आदेश पर मेघनाथ को अपनी ओर आकर्षित करने का प्रयास किया।
लेकिन मेघनाथ रंभा अप्सरा की चाल को समझ गया और उसे अपवित्र भावना से प्रेरित मानते हुए क्रोधित होकर रंभा को श्राप दे दिया।मेघनाथ ने रंभा को श्राप दिया कि –
“तू जो अपनी सुंदरता और मोहिनी रूप से दूसरों को मोहित करती है, आज से तू पत्थर की मूर्ति बन जाएगी।
“रंभा अप्सरा यह सुनकर डर गई और उसने हाथ जोड़कर क्षमा मांगी, कहा कि वह केवल इंद्र के आदेश का पालन कर रही थी।
श्राप के कारण रंभा वहीं एक पत्थर बन गई। कहा जाता है कि रंभा कई वर्षों तक इस श्राप को भोगती रही। कुछ कथाओं में कहा गया है कि नलकुबेर या किसी अन्य तपस्वी द्वारा उसके सम्मानपूर्ण स्पर्श या श्रद्धा से दर्शन के बाद वह श्रापमुक्त हुई।

रंभा अप्सरा और विश्वामित्र :-
एक बार महर्षि विश्वामित्र घोर तपस्या कर रहे थे, तब इंद्रदेव को भय हुआ कि यदि यह तपस्वी अपनी तपस्या से ब्रह्मर्षि बन गया, तो देवताओं का सिंहासन डगमगा सकता है।
इंद्र ने अप्सरा रंभा को भेजा कि वह विश्वामित्र की तपस्या भंग कर दे। रंभा ने अपनी सुंदरता से उन्हें मोहित करने की कोशिश की, लेकिन विश्वामित्र ने रंभा के इरादे को जानकर उसे भारी श्राप दे दिया।
रंभा अप्सरा के प्रमुख मंदिर:-
भारत में कोई प्रसिद्ध या राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त “रंभा देवी मंदिर” नहीं है। परंतु कुछ लोक-परंपराओं में या तांत्रिक स्थलों पर अप्सराओं के प्रतीक रूप में पूजा देखी जाती है।
१. नेपाल के कुछ तांत्रिक स्थानों में अप्सराओं और योगिनियों की मूर्तियाँ मिलती हैं, जहाँ रंभा जैसे रूपों को दर्शाया गया है।
२. उत्तराखंड और उत्तर-पूर्व भारत में कुछ आदिवासी मान्यताओं में “नृत्य करने वाली दिव्य स्त्रियाँ” (जिन्हें स्थानीय रूप में रंभा जैसा माना जाता है) की पूजा होती है।
३. मध्यप्रदेश में भोपाल के पास 64 योगिनियों की मूर्तियाँ हैं, कुछ विद्वानों का मत है कि इनमें कुछ मूर्तियाँ रंभा, मेनका, उर्वशी जैसी दिव्य नारियों के प्रतीक हो सकती हैं।
रंभा का स्मरण और पूजन :-
कई नाट्यकला संस्थानों में, रंभा को नृत्य और सौंदर्य की देवी के रूप में स्मरण किया जाता है।कुछ तांत्रिक उपासक अपने प्रयोगों में रंभा जैसी अप्सराओं को आह्वान करते है।कला के क्षेत्र में जैसे कथक, भरतनाट्यम आदि नृत्य परंपराओं में, रंभा को प्रेरणास्वरूप माना जाता है।
रंभा अप्सरा की पूजन विधि:-
रंभा अप्सरा की पूजन विधि में सबसे पहले ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करना और स्वच्छ वस्त्र धारण करना चाहिए। पूजा के लिए एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछाएं और उस पर रंभा देवी की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। पूजा के दौरान देवी को लाल फूल, फल, मिठाई आदि अर्पित करें और रंभा तीज की व्रत कथा का पाठ करें या सुनें। अंत में भगवान शिव, मां पार्वती और देवी रंभा की आरती करें।
निष्कर्ष:-
रंभा अप्सरा के जीवन से कई तरह की शिक्षाएँ मिलती हैं।
1. आत्म-सम्मान और स्वाभिमान:
रंभा अप्सरा ने हमेशा अपनी पहचान और सिद्धांतों पर कायम रही, भले ही इसका परिणाम कुछ भी हो। उन्होंने रावण के प्रलोभन को अस्वीकार कर दिया और उसे श्राप दिया, जिससे उसकी शक्ति और ताकत व्यर्थ हो गई।
2. सुंदरता और शक्ति का सही उपयोग:
रंभा अप्सरा ने अपनी सुंदरता और शक्ति का उपयोग केवल अपने लिए नहीं किया, बल्कि दूसरों की मदद करने और न्याय की रक्षा करने के लिए भी किया।
3. नारी-स्वाभिमान:
रंभा अप्सरा ने दुनिया को दिखाया कि एक महिला को अपनी सुंदरता और शक्ति के साथ आत्म-सम्मान और स्वाभिमान बनाए रखना चाहिए।
4. ईमानदारी और सम्मान:
रंभा अप्सरा की कहानी यह भी सिखाती है कि शक्ति और ताकत ईमानदारी और दूसरों के प्रति सम्मान के बिना व्यर्थ है।
5. सौभाग्य और समृद्धि:
रंभा को सौभाग्य और समृद्धि की देवी के रूप में भी पूजा जाता है। यह शिक्षा देती है कि केवल भौतिक धन ही नहीं, बल्कि सुख, प्रेम और अच्छे संबंध भी महत्वपूर्ण हैं।#Apsaron ke rani#