
प्रस्तावना:
मां की कहानी : एक समय की बात है एक गांव में एक बूढी औरत रहती थी। उसके तीन बहुएं व तीन बेटे थे। वे सब एक साथ रहते थे।बूढी औरत बहुत धार्मिक थी ,हर दिन वह पूजा पाठ किया करती थी। वह सुबह जल्दी उठती और गंगा जी में स्नान करने जाती थी वहां से आकर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा किया करती थी। कार्तिक के महीने में वहां विशेष रूप से जल्दी उठकर स्नान व पूजा करती थी।
पूजा के लिए वहां भगवान विष्णु के लिए माखन मिश्री,दही व लड्डू का भोग बनाती थी और भगवान विष्णु को चढ़ाती ,जो प्रसाद बनाती थी वह आस – पड़ोस को वितरित करती थी।
गांव के लोग बुढी मां के इस पूजा पाठ की बहुत इज्जत करते थे वह उनकी प्रशंसा किया करते थे। कार्तिक के महीने में वहां कार्तिक पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान के लिए जाती और विष्णु जी को भोग चढ़ाती ।
तीनों बहुएं व बुढी मां:-
उसकी तीनों बहूओ को यह सब बिल्कुल पसंद नहीं था। वे अक्सर उसकी पूजा पाठ का मजाक उड़ाया करती थी और प्रसाद को भी नहीं खाती थी। वे तीनों बहुएं कहती कि प्रसाद में तुलसी के पत्ते हैं और हम इन पत्तों को नहीं खाते, यह सब सुनकर बुढ़ी मां दुःखी हुआ करती थी और चुपचाप अपनी पूजा पाठ किया करती थी।
बूढी मां का पति कुछ समय पहले ही गुजर गया था इसलिए वह अकेले ही रहती थी ,उसके बेटे भी बहूओ की तरफ हो गए थे इसलिए बूढी मां अकेली ही रहती थी। वहां रोज सुबह उठकर स्नान करती ,पूजा पाठ करती और पड़ोसियों को प्रसाद देती थी। और अपना काम किया करती थी।
लेकिन उसकी तीनों बहूओ को यह सब बिल्कुल पसंद नहीं था वह कहती कि यह बुढ़िया रोज पूजा करती है ,अनाप-शनाप खर्च करती है ,पंडितों को दान देती है जिससे खर्च बढ़ता जा रहा है। वे कहती अगर यह मर जाए तो अच्छा रहे कम से कम यह सब खर्चा तो बचेगा।
बूढी मां ने अपने तीनों बेटों को बड़े ही लाड़-प्यार से पाला था ।उसने और उसके पति ने मिलकर बेटों की परवरिश की थी। उन्होंने उन्हें हर चीज प्रदान की। लेकिन अब जब बूढी मां को उसके बेटों की सबसे ज्यादा जरूरत थी तब बेटे उससे बात तक नहीं करते थे , वे उससे दूर रहा करते थे।
बुढ़ी मां देर रात भगवान की पूजा करती ,वह अपने बच्चों के लिए आंसू बहाती,वहां कहती की हे भगवान मैंने तो किसी के साथ कभी भी कुछ बुरा नहीं किया फिर मेरे साथ ऐसा क्यों हो रहा है।
एक दिन बूढी मां भगवान से प्रार्थना कर रही थी कि हे भगवान मुझे इस दुःख से मुक्ति दिला दो, मेरे बच्चों का भला करो और उन्हें सही मार्ग दिखाओ। इस तरह बूढी मां ने अपनी पूजा पाठ व दान पुण्य को कभी नहीं छोड़ा

बूढी मां और घर का बंटवारा:-
लेकिन उसकी तीनों बहूओ ने ठान लिया था कि वे तीनों अब एक साथ इस घर में नहीं रहेगी और घर का बटवारा करके अलग हो जाएगी ।वे तीनों सोचती थी कि अगर हम अलग हो जाएंगे तो अपने हिसाब से रह सकेंगे और रोज के इस बूढी मां के खर्चों से भी बचा जा सकेगा।
तीनों बहूओ ने एक दिन आपस में बात की और उन्होंने अपने पतियों को भी बताया कि हमें अब अलग हो जाना चाहिए।छोटी बहू ने अपने पति से कहा कि देखिए अब बड़े भैया के बच्चे तो बड़े हो गए हैं ,लेकिन अपने बच्चे अभी छोटे हैं अभी उनको ओर पढ़ाना है और बुढ़ी मां के खर्च भी बहुत ज्यादा है ।हर समय पूजा पाठ में ही लगी रहती है और बहुत पैसा खर्च करती है।
बीच वाली बहू ने भी अपने पति से कहा हमें अलग हो जाना चाहिए हमें अपनी मर्जी से रहना है। कहां पैसा खर्च करना है ,कहां नहीं करना है यहां हम अपने हिसाब से किया करेंगे,सास के नखरे और खर्च अब बहुत ज्यादा बढ़ते ही जा रहे हैं अब बर्दाश्त नहीं होता। हमें अपने बच्चों के लिए भी सोचना चाहिए।
बड़ी बहू ने भी अपने पति से कहा कि अब बच्चे बड़े हो रहे हैं अब उनके शादी का टाइम आ गया है इसलिए पैसे इकट्ठे करना है ।सास के खर्च बहुत ज्यादा है, हमें अपने हिसाब से काम करना चाहिए। हमें हमारे बच्चों का भविष्य सुधारना है तो अब तीनों को अलग होना ही पड़ेगा।
तीनों बहूओ ने अपने पतियों को समझाया और उनके मन में बंटवारे की बात डाल दी। तीनों भाई भी अब बंटवारे के लिए तैयार हो गए ।बंटवारे के लिए गांव के पंचों को बुलाया गया और घर का बंटवारे करने की बात कही ।तीनों बहुएं भी बंटवारे के लिए तैयार हो गई, गांव के पंचों ने घर का चार हिस्सों में बंटवारा किया।
तीन हिस्से तीनों बेटों के लिए, वह एक हिस्सा बूढी मां के लिए। घर का सारा सामान भी चार हिस्सों में बांट दिया गया। बूढी मां अब अकेली रह गई और अकेली रहने लगी
तीनों बहूओ ने अपना-अपना सामान अपने-अपने जगह पर रख लिया । बूढी मां अब अकेली एक झोपड़ी में रहती थी और वहां अपने बेटों से नाराज थी और बहूओ ने भी उसे घर से बाहर निकाल दिया था। वहां रोज सुबह उठकर फिर से गंगा स्नान करती प्रसाद बनाती और सभी को प्रसाद देती थी और भगवान से प्रार्थना करती थी कि हे भगवान मुझे इस दुख से मुक्ति दिलाओ मेरे बच्चों का भला करो और उन्हें सही मार्ग पर ले आओ।
बूढी मां के पास जो थोड़ा आटा, दाल ,चावल था। उसी में वहां अपना गुजारा करती और सोचती कि मुझे अब अपनी जिंदगी ऐसे ही बितानी पड़ेगी मेरे बच्चों ने तो मुझे छोड़ दिया लेकिन मैं भगवान की भक्ति कभी नहीं छोडूंगी
भगवान के द्वारा बूढ़ी मां की सहायता :-
एक दिन की बात है बूढी मां अपनी झोपड़ी में बैठी थी वहां झोपड़ी में एक युवक आया। वह 17 या18 साल का हस्ट पुस्ट युवक था और उसके चेहरे पर एक अलग ही दिव्य रोशनी थी।उसने कहा की अम्मा आप मुझे पहचानती नहीं होगी, लेकिन मैं आपके मायके से आया हूं ।
मेरा नाम कृष्णा है मेरे पिताजी ने मुझे आपकी मदद करने के लिए भेजा है ।बूढी मां ने कहा कि बेटा तुम मेरे मायके से आए हो , मैंने तो तुम्हें कभी देखा नहीं तभी कृष्ण ने कहा कि हां हम्मा मैं आपके भाई का पोता हूं मैंने सुना है कि आपके बेटों ने आपको घर से निकाल दिया है ।इसलिए मेरे पिताजी ने मुझे आपकी मदद करने के लिए भेजा है।
बूढी मां ने कृष्णा को अंदर बुलाया और उसे पानी का गिलास दिया और उसे थोड़ा गुड़ दिया। कृष्णा ने पानी पिया और गुड़ खाया और अपनी थैली से कुछ खाने का सामान निकाला, कपड़े और दवाइयां निकाली और उसने कहा की अम्मा यह सब सामान में आपके लिए लाया हूं।
बूढी मां ने कृष्णा को इन सबके लिए कहा कि बेटा में भगवान से प्रार्थना करूंगी कि तुम्हें हमेशा वहां खुश रखें तभी कृष्णा ने कहा कि अम्मा आप चिंता मत कीजिए मैं आपके लिए रोज खाने का सामान लाया करूंगा यहां कहकर कृष्णा ने वहां से विदा ली।
बूढी मां ने भगवान से कहा कि आपने मेरी प्रार्थना सुन ली। बूढी मां कहां की अब मे भूखी नहीं रहूगी और अब पहले की तरह ही प्रसाद बनाकर लोगों को देती रहूगी।
लेकिन तीनों बहुएं बूढी मां से बहुत जलती थी वहां सोचती थी कि यह बूढी मां रोज इतना सारा सामान कहां से ला रही है । इसके पास तो कोई कमाने वाला भी नहीं है और इतनी तंदुरुस्त भी हो रही है।

बहूए द्वारा बुढी मां का समान घर से फेंकना:-
तीनों बहुएं ने एक दिन सोचा कि हमें इस बुढ़िया का पता लगाना होगा कि यह सामान कहां से लाती है ,एक दिन वहां तीनों जब बूढी मां स्नान करने गंगा में गई तो उसके घर में घुस गई वह उन्होंने देखा कि घर में तो दाल चावल मसाले सब रखे हुए हैं तो बड़ी बहू ने कहा कि यह बुढ़िया तो बहुत होशियार निकली हम जब काम में बिजी रहते थे जब उसने यहां सब हमारे घर से चुरा लिया है , मझली बहु ने भी कहा कि हां दीदी आप सही कह रही है । यहां सारा सामान हमारा ही है ,छोटी बहू ने भी अपनी सहमति बताई।
उन्होंने बूढी मां का सारा सामान वहां से उठा लिया लेकिन उन्होंने देखा कि इन सारे सामान में तो तुलसी के पत्ते हैं उन्होंने तुलसी के पत्तों को नाली में फेंक दिया और सामान को वहां से उठा लिया।

तीनों बहूओ का कुत्तिया बनना:-
लेकिन तभी इस समय एक घटना घटी तीनों बहूओ ने देखा कि जब वह तुलसी के पत्ते नाली में फेंक रही थी तब उनके हाथ पैर कुत्ते के पंजे बन रहे थे ।तीनों बहुएं चिल्लाने लगी लेकिन उनकी किसी ने नहीं सुनी व तीनों कुत्तिया बन गई।
गांव में हड़कंप मच गई कि तीनों बहुएं कुत्तिया बन गई है उनके बच्चों व उनके पतियों ने जब यहां सब कुछ देखा तो वहां हैरान रह गए। उन तीनों के बच्चे चिल्लाने लगे की मम्मी कुत्तिया बन गई है पापा देखो मम्मी को यहां क्या हो गया उनके पति भी हैरान थे कि यह सब क्या और कैसे हो गया।
उन्होंने बहुत कोशिश की इन तीनों कुत्तिया को घर से बाहर निकाल दिया जाए , लेकिन वह तीनों घर से बाहर निकलने को तैयार ही नहीं । वह तीनों अपनी भाषा में कुछ ना कुछ बोलने का प्रयास कर रही थी।
उनके पतियों ने उनके बच्चों को संभाला और कहा कि अब कुछ नहीं किया जा सकता है। अब तो बस मां का इंतजार है वहीं कुछ हल बता सकती है ।गांव के लोग भी हैरान थे कि यहां अनहोनी कैसे हो गई।
अब तो सब लोग बुढी मां के आने का इंतजार कर रहे थे। बुढीमां को भी अब अपने काम से राहत मिली थी ,कृष्णा रोज उनके लिए खाना रख जाता वह रोज भगवान को भोग लगाकर सभी को प्रसाद बांट देती थी। लेकिन बूढी मां को इस बात का कोई पता नहीं था कि उसके घर में क्या हो रहा है ।
तीनों बहुएं वही आंगन में कुत्तिया बनी हुई बेठी रहती और उनके पतियों को ही घर का सारा काम करना पड़ता था और वह सोच रहे थे कि उनकी पत्नियों कब वापस आएगी ।
एक दिन बूढी मां गंगा स्नान करने जा रही थी तब एक मनुष्य ने उन्हें कहा कि मां आपको पता है आपके घर में क्या चल रहा है ,तब बूढी मां ने कहा कि नहीं बेटा मुझे नहीं पता तब उसने कहा कि आपकी तीनों बहूएं कुत्तिया बन गई है तब बूढी मां ने सोचा कि यह कैसे संभव है।
बूढी मां ने तुरंत गंगा स्नान किया और घर की ओर लौट पड़ी उसने भगवान से प्रार्थना की ,भगवान मेरे घर की रक्षा करना और मेरे बच्चों को सही मार्ग दिखाना।

बूढी मां द्वारा भगवान से प्रार्थना करना:-
जब बूढी मां घर की ओर लौटी उसने देखा कि उसके घर के बाहर कहीं लोग इकट्ठा थे उसने पूछा कि यहां क्या हो रहा है। यहां इतनी भीड़ क्यों लगी हुई है।
गांव के लोगों ने बुढ़ी मां को सारी घटना बताई।बूढी मां ने अपने बेटे को आवाज़ लगाई और उनसे पूछा कि बेटा यह सब कैसे हो गया बेटे ने रोते-रोते कहा कि मां हमसे बहुत बड़ी गलती हो गई है। हमारी पत्नियों ने तुम्हारे सामान को नाली में फेंक दिया था जिससे वह इस समय कुत्तिया बन गई।
बूढी मां ने अपने बेटे को समझाया कि तुम लोग रो मत भगवान सब ठीक करेंगे । बूढी मां ने अपने भगवान से प्रार्थना की और भगवान से समाधान मांगा।

बुढी मां व साधु:
बूढी मां ने सोचा कि किसी साधु से मुझे इसके बारे में पूछना चाहिए । इस समय एक साधु गांव में आया हुआ था। बूढी मां ने उस साधु को अपने घर बुलाया और सारी घटना बताई ,तब साधु ने ध्यानपूर्वक सोचा और कहा कि मां यह सब आपकी कृपा भक्ति का ही फल है लेकिन इसका समाधान भी है
तभी बूढी मां ने साधु से पूछा कि बाबा कृपा करके मुझे इसका उपाय बताइए मैं अपने बच्चों को इस तरह रोते हुए नहीं देख सकती। तभी साधु ने कहा कि कार्तिक महीने में तुम्हें एक विशेष पूजा करनी होगी और अपने स्नान के पानी से ही तीनों बहूओ को निलाना होगा। ब्राह्मणों को भोजन करना होगा और उनका झूठा तीनों बहू को खिलाना होगा, तभी बूढी मां ने साधु से कहा कि मैं यहां सब करने को तैयार हूं ।
बूढी मां ने यह सब अपने बेटे को बताया और बेटा भी इसके लिए मान गया। वहां सुबह रोज की तरह गंगा में स्नान करती और उस पानी को एकत्रित कर लेती थी। वहां भगवान को भोग चढ़ाती और सभी को प्रसाद वितरित करती थी । इन सब में अब उसके बेटे भी मदद करने लगे थे । बेटों को घर का सारा काम करना पड़ता था ।
बूढी मां से उसकी तीनों बहूओ के बच्चे पूछते की दादी हमारी मां कब आएगी, हमें उनकी बहुत याद आती है तभी बूढी मां कहती है कि बेटा भगवान पर भरोसा रखो । वहां जल्दी ही उन तीनों को ठीक कर देंगे।
बूढी मां ने पांच ब्राह्मणों को बुलाया और उन्हें भोजन कराया गांव के लोग भी इस समय उनकी मदद करने लगे थे, उसके बेटो ने भी उनकी तरफ से पांच पांच ब्राह्मणों को बुलाया ।इस तरह कुल 21 ब्राह्मण हो चुके थे
इसी तरह कार्तिक पूर्णिमा का दिन भी आ चुका था बूढी मां ने सभी ब्राह्मणों को भोजन कराया और उन्हें दक्षिणा प्रदान की और प्रार्थना की, की मेरे कार्तिक स्नान का सारा फल उन्हें मिल जाए और वह फिर से पहले जैसी हो जाए और अपने असली रूप में आ जाए । बूढी मां ने ब्राह्मणों को भोजन कराया ब्राह्मण खाने से बहुत खुश हुए और उन्हें आशीर्वाद दिया कि माही तुम्हारी सारी इच्छाएं पूरी होगी और ब्राह्मण वहां से चले गए

बहूओ का फिर से अपने असली रूप में आना:-
ब्राह्मणों का झूठा हुआ भोजन बूढी मां ने तीनों बहूओ को खिलाया । तीनों बहूओ ने बड़े ही प्यार से उस भोजन को खाया और बुढ़ी मां ने गंगा जल से तीनों बहूओ को स्नान कराया ।जैसे ही स्नान किया वैसे एक चमत्कार हुआ तीनों बहुएं अपने असली रूप में आ चुकी थी ।
जैसे ही अपने असली रूप में आई वहां बूढी मां के पैरों के नीचे बैठकर रोने लगी और कहा कि मां हमें माफ कर दीजिए हमसे बहुत बड़ी गलती हो गई है हमें आपके प्रसाद को ऐसे फेकना नहीं चाहिए था। हम अब ऐसा आगे से कभी नहीं करेंगे तब बूढी मां ने उन तीनों को गले से लगाया और कहा कि मैं तो बस इतना चाहती हूं कि तुम सब खुश रहो भगवान की भक्ति करो तब तीनों बहूओ ने कहा कि अब हम भी हर कार्तिक पूर्णिमा को स्नान करेंगे और व्रत करेंगे और भगवान की पूजा किया करेंगे ।और आपकी भी हमेशा सेवा करते रहेंगे ।आपको कभी भी कुछ भी दुख नहीं देंगे।
इस तरह बूढी मां व उसके परिवार के सभी लोग आपस में सही से प्रेम पूर्वक रहने लगे, सभी साथ मिलकर खाना खाते व भगवान की पूजा करते हैं ।
बूढी मां ने सभी को कार्तिक पूर्णिमा के कार्तिक मास के स्नान के बारे में समझाया और कहा कि देखो बेटा भगवान की भक्ति और सेवा से हमेशा हमें सुख व शांति मिलती व हमारे घर में भी शांति बनी रहती है
हमें हमेशा ही सच्चे दिल से भक्ति करना चाहिए और दूसरों की मदद करना चाहिए
तभी बड़ी बहू ने कहा कि मां अब हम समझ गए और अब हम भी भगवान की भक्ति किया करेंगे । तभी बीच वाली बहू भी बोली की मां हमे माफ कर दीजिए हमने आपके साथ बहुत गलत किया है। तभी छोटी बहू बोली मां अब हम भी हर साल कार्तिक स्नान किया करेंगे और आपके साथ पूजा किया करेंगे ।
निष्कर्ष-
बूढी मां ने समझाया कि भगवान की भक्ति और सेवा से ही हमें सब कुछ प्राप्त हो सकता है। तीनों बहूओ ने भी अगले साल से कार्तिक स्नान किया, सभी ने मिलकर बूढी मां की सहायता की और सभी को प्रसाद बांटा और सभी ने एक साथ घर में एक साथ मिलकर खाना खाया । सभी एक साथ बहुत खुशी से रहने लगे । बेटों का व्यापार भी बहुत अच्छा बढ़ने लगा। तीनों बहुएं भी बूढी मां की दिनभर सेवा करती व उनकी मदद किया करती थी। बूढी मां ने उन्हें तुलसी के पत्तों का महत्व के बारे में बताया कि तुलसी के पत्तों में एक भी शक्ति होती है जो भोजन को पवित्र बना देती है।
बूढी मां ने तीनों बच्चों को समझाया कि हमें अपने कर्मों का फल इसी जन्म में भोगना पड़ता है जैसे कर्म करेंगे वैसा ही फल हमें मिलेगा।
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